पदचिह्न
काव्य साहित्य | कविता भारती पंडित27 Jul 2014
उम्र छोड़ती जाती है पदचिह्न
चेहरे पर हमारे कदम दर कदम
झुर्रियाँ , झाइयाँ ,धब्बे बनकर
शायद ही छुपा पाते हैं प्रसाधन उन्हें
उम्र छोड़ती जाती है पदचिह्न
शरीर पर हमारे कदम दर कदम
मोटापा, रक्तचाप,संधिवात बनकर
शायद ही मिटा पाती है दवाएँ जिन्हें
कुछ पदचिहन छोड़ती है उम्र
समझ पर भी कदम दर कदम
बड़प्पन और सुन्दर विचार बनकर
नहीं पड़ती ज़रूरत छिपाने की जिन्हें
क्योंकि
जीवन सार्थक कहलाता है इनके ही होने पर
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