पहाड़
काव्य साहित्य | कविता सतीश सिंह15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
चाहता था
मैं भी जीना स्वच्छंद
थी महत्वाकांक्षाएँ मेरी भी
पर अचानक!
किसी ने कर दिया
मुझे निर्वस्त्र
तो किसी ने खल्वाट
तब से चल रहा है
सिलसिला यह अनवरत
और इस तरह
होते जा रहे हैं
मेरे जीवन के रंग, बदरंग
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