अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

पल-पल जीती शब्द साधिका के लिए - फिरोज़ा रफीक

समीक्ष्य पुस्तक: क्योंकि... औरत ने प्यार किया (उपन्यास)
लेखिका: डॉ. ज़ेबा रशीद
प्रकाशक: पुस्तकबाज़ार.कॉम 
(info@pustakbazar.com)
pustakbazaar.com
संस्करण: 2016 ई-पुस्तक
मूल्य: $3.00 (CDN)
पृष्ठ संख्या: 281
डाउनलोड लिंक: क्योंकि... औरत ने प्यार किया 

"क्योंकि ...औरत ने प्यार किया" उपन्यास का केन्द्र फिर स्त्री ही है। इस उपन्यास को नारी सशक्तिकरण की कथा मात्र कहना उचित नहीं होगा। इसमें औरत के जीवन की समस्याओं को देखने-परखने का नया नज़रिया है।

यह उपन्यास... फिर एक नया दृष्टिकोण लिए, स्त्री जीवन के चारों ओर परिक्रमा करता कई प्रश्न सामने लाया है। ज़ेबा रशीद का कथा संसार नारी जीवन के भीतर के पहलू उजागर करता कई मुद्दों से रू-ब-रू कराता है। इसलिए पठनीय और स्मरणीय है। इनके पहले उपन्यास मेरे पास हैं "लम्हे की चुभन", "नेह रो नातौ" भी बहुत चर्चित रहे।

गृहणी एवं समाज सेविका की नज़र से लेखिका समाज के विविध संदर्भों को बारीक़ी से देखती है तथा उनका आकलन करती है। इनके पात्र गढ़े हुए नहीं, जीवन्त होते है। वे स्वाभाविक जीवन जीते हैं। लेखिका ने इन पात्रों में ऐसा प्राण संचार कर काग़ज़ की ज़मीन पर उतारा है कि पात्र अपनी दास्तां ख़ुद कहते हैं। लेखिका उन्हें कहने देती है और पात्रों के साथ उन्हीं की भाषा में बोलती है। यह विशेषता है जो इन पात्रों के ज़ेहन में लम्बे समय तक उनसे संवाद करता रहता है...नायिका से बतियाने का आग्रह करता है। इनका सीधे-सादे शब्दों में अपनी बात कहने का कमाल बहुत ही प्रभावात्मक है। लेखिका की भाषा सरल होते हुए भी गूढ़ार्थ है। यह रचनात्मक सत्य है।

परम्पराएँ व आधुनिक टकराव जो समय का सच है, उपन्यास में देखने को मिला। एक ऐसी युवती की कहानी है जो परस्पर विरोधी जीवन-मूल्यों के भँवर जाल में पड़ जाने के कारण दुःखद अंत हो जाता ....लेकिन उसका हौंसला....उसका स्वर मुखर हो उठा....वह कहती है.....

"मैं दुबारा जीना चाहती हूँ। वापस उसी डगर पर चलना चाहती हूँ जहाँ से मैंने पहला क़दम चलना शुरू किया था।"

नये भोर की शुरूआत.....प्रेरणादायक उपन्यास है..."क्योंकि....औरत ने प्यार किया...."!

औरत ख़ुद को प्यासी रखकर पुरुष को सैराब करती है....तन-मन वार कर पुरुष के पैर की ख़ाक बन जाती है फिर भी पढ़ी-लिखी औरतें भी पुरुष द्वारा ठगी जाती है....गुनाह पुरुष करता है और सज़ा औरत को भुगतनी पड़ती है।

लेखिका ने उपन्यास में बेटी का मायके से सम्बन्ध, ससुरालवालों के प्रति फ़र्ज़, पति-पत्नी के सम्बन्ध दर्शाते हुए इस उपन्यास के जरिए समाज में अमानवीयता, प्रताड़ना, परिवारों का स्वार्थ के कारण सम्बन्धों में बिखराव व पारस्परिक मर्यादाओं पर बल देते हुए नवयुवक-नवयुवतियों को राह बताने का सफल प्रयास किया है।

ज़िन्दगी से जुड़कर बोलती क़लम अपने जीवन के अर्जित बहुमूल्य अनुभवों की पर्त दर पर्त खोलती चलती है, जीवन के मनोवेग और संवेदना के साथ लेखकिय निजता का आग्रह बहुतीव्रता के साथ मौजूद है कि उपन्यास को मार्मिक और कारुणिक दृश्य बिम्बों से देखे जाने का आग्रह शामिल है।

पैसों की कसौटी पर पति-पत्नी के प्रेम, समर्पण और त्याग को तौलने की हीन प्रवृति सोचने को मजबूर करती है। वर्तमान परिवेश और परिदृश्य में इसमें कोई संदेह नहीं कि पैसे ने पारिवारिक, सामाजिक और स्नेह सम्बन्धों के समीकरण बदल दिये हैं।

यह उपन्यास आधुनिकता की गाथा है और इस युग के सामाजिक जीवन का एक रोचक चित्र उपस्थित करता है। एक विश्वास है यह रचना नई पीढ़ी को अनुप्राणित करते हुए रिश्तों की पहचान करायेगी।

ज़ेबा रशीद का गद्य कथानक ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाईयों से सरल पर बड़े तल्ख़ तरीक़े से बयान करता है उसी तरह पद्य में भी कमाल हासिल है।

सधी क़लम कथ्य को नई गहराई.... नया आयाम प्रदान करती है व लिखने की धारा ही ज़ेबा रशीद को एक अलग पहचान देती है।

उपन्यास आरम्भ से अंत तक रोचक है और मेरा विश्वास है कि पाठकों के दिल में विशेष स्थान बनाकर लेखिका की क़लम को एक सम्मानीय स्थान प्राप्त करेगा।

उम्मीद है पाठकगण तहेदिल से उपन्यास "क्योंकि... औरत ने प्यार किया" का स्वागत करेंगे........।

समीक्षक
श्रीमती फिरोज़ा रफीक
जुबेल साऊदी अरब

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

कविता

पुस्तक समीक्षा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं