परछाई
काव्य साहित्य | कविता विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'1 Jun 2019
आदमी के पीछे
भागी जा रही
अनुगामिनी
सहचरणी बन
न जाने क्यों?
कभी लघु तो
कभी दीर्घ
समझ नहीं पाया
आज तक
परछाई को आदमी ...
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
दोहे
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}