पतंग
काव्य साहित्य | कविता संजय नारायण15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
पुरुष ने कहा,
मैं औरों जैसा नहीं हूँ,
संकुचित नहीं हैं विचार मेरे
वृहद है सोच मेरी,
मेरे साथ आओ,
मैं दूँगा तुम्हें
अनंत आकाश
उड़ने को, विचरने को,
खोजने को, रचने को,
मन की कल्पनाओं में...
मनचाहे रंग भरने को।
आओ तो ज़रा साथ मेरे...
मैं बदल दूँगा तुम्हारी दुनिया!
‘मैं’ शब्द पर दिए गए विशेष बल को
स्त्री ने भी विशेषकर सुना,
और कहा,
फेंक एक उपेक्षित मुस्कान पुरुष की ओर,
मैं?
सुनो पुरुष!
तुम्हारी महानता का
यह शौक़ करने को पूरा,
नहीं हूँ मैं उचित पात्र,
क्योंकि औरत हूँ मैं,
मेरे पास हैं पंख अपने,
और तुम्हें चाहिए
एक पतंग
उड़ा सको जो,
इशारों पे अपने,
या चाहो जब,
बना सको मुझे,
एक कटी पतंग...
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