पत्नी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कीर्ति श्रीवास्तव15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
वो दोस्त भी है सहेली भी है
हर सुख दुख की सहभागी भी है
तुम्हारे इर्द गिर्द ही उसकी दुनिया है
रोती भी है खिलखिलाती भी है
बच्चों की तरह मासूमियत भी है
अपने आस पास की दुनिया में लीन है
अपने दर्द को बयां नहीं करती है
आपको ख़ुश देखकर ही ख़ुश होती है
ख़ुद व्यस्त रहती है घर को व्यवस्थित रखती है
ख़ुद को संवारती है आईने में निहारती है
कोई बोले ना बोले ख़ुद को देख खुश होती है
कभी बालों को बनाती है गजरे से सजाती है
चूड़ियों को खनकाती है घर को महकाती है
एक पत्नी की रोज़ की ये कहानी है
सुबह से शाम तक घर को घर बनाती है
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं