पीएच.डी. डिग्री
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिप्रा वर्मा6 Dec 2015
एक निश्चित परिधि चक्र में
हम आते रहे, हम जाते रहे
अपनी ऊर्जा और उम्र खपाते रहे
मगर वो ऊर्जा वहीं आस पास ही रही
समय की डाल पर ठहरी रही
शांत सी प्रतीक्षा करती ही रही
आखिर एक दिन पृथ्वी को मेरा
यूँ चक्र काटना और न भाया
धूमकेतू सा फेंका, आकाश ने बिठाया
चकमक पत्थर सी घिस घिस कर मैं
जगमग जगमग सी हो गई थी
एक तारा जैसी मैं हो गई थी
थक थक कर अथक प्रयास मेरा
रंग आखिर आज ले आया था
मैंने डॉक्टरेट डिग्री को पाया था
पर मेरी उपलब्धि ने तो बस
इतना वक़्त लगाया था कि
सर पर मेरे न माँ, न आज पिता का साया था
बस तारों को देख के समझा और
उनको संदेशा भिजवाया था कि आज
जो भी हुआ शायद...
मुझसे माँ ने ही करवाया था
स्वप्न तुम्हारे पूर्ण करूँ माँ तुम
वरदान सदा मुझे देती ही रहना
तेरा अक्स हूँ धरती पर मैं माँ
मुझमें तू हरदम ज़िंदा रहना!!!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं