फिर आई है हिचकी
काव्य साहित्य | कविता संजय वर्मा 'दृष्टि’1 Oct 2019
हिचकियाँ जब आतीं
वह याद दिलातीं
संगिनी के पलों को
साथ फेरों का संकल्प
दुःख-सुख की साथी
एकाकीपन खटकता
परछाई नापता सूरज
पहचान वाली आवाज़ों में
खोजता मुझे दी जाने वाली
तुम्हारी जानी पहचानी पुकार
आँगन-मोहल्ले में सूनापन
विलाप के स्वर
तस्वीरों में क़ैद छवि
बहते अश्रु
तेज़ हो जाते
तुम्हारी पुण्य तिथियों पर
दरवाज़ा बंद करता
खालीपन महसूस
अकेलापन कचोटता मन
बिन तुम्हारे
हवाओं से उत्पन्न आहटें
देती संदेशा
मै हूँ ना
मृत्यु नाप चुकी रास्ता
अटल सत्य का
किन्तु सात फेरों का संकल्प
सात जन्मों का छोड़ साथ
कर जाता मुझे अकेला
फिर आई है हिचकी
मन ये कहता है कि
क्या तुम मुझे याद कर रही हो?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}