फूल
काव्य साहित्य | कविता गौरी1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
फूल खिलते हैं ख़ूबसूरत
फिर न जाने कब उजड़ते
टूटकर बिखरते पतझड़ में
कुछ सूख जाते कुछ हैं गिरते
मौसम का बदलाव है निश्चित
न निराश होते न ही रूठते
न मायूस होते न हैं डरते
हर बदलाव का कर वो सामना
फिर खिल उठने को हैं लड़ते
देकर अपनी ख़ुशबू सबको
त्याग अपना जीवन करते
रोज़ नई सुबह-सा ये भी
मुसकराकर हैं पुनः खिलते।
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