फूलों की टहनियों पे नशेमन बनाइये
शायरी | ग़ज़ल अब्दुल हमीद ‘अदम‘28 Apr 2007
फूलों की टहनियों पे नशेमन बनाइये
बिजली गिरे तो जश्ने-चिरागां मनाइये
नशेमन=घोंसला; जश्ने-ए-चिराग़ां=प्रकाश का उत्सव/ दिवाली
कलियों के अंग अंग में मीठा सा दर्द है
बिमार निकाहतों को ज़रा गुदगुदाइये
निकाहत=सुगन्ध
कब से सुलग रही है जवानी की गर्म रात
ज़ुल्फें बिखेर कर मेरे पहलू में आईये
बहकी हुई सियाह घटाओं के साथ साथ
जी चाहता है शाम-ए-अबद तक तो जाईये
शाम-ए-अबद=अनन्त संध्या
सुन कर जिस हवास में ठंडक सी आ बसे
ऐसी काई उदास कहानी सुनाईये
हवास=अनुभव
रस्ते पे हर कदम पे ख़राबात हैं ”अदम”
ये हाल हो तो किस तरह दामन बचाईये
ख़राबात=मदिरालय
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