प्रतिभा का स्वागत
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. हरि जोशी8 Jan 2019
उस समय तक उसकी रचनाओं को पत्रिकाओं में स्थान नहीं मिलता था। फिर भी पत्र-पत्रिकाओं में उसके द्वारा रचनाएँ भेजते रहने का क्रम जारी था। वह नगर की साहित्यिक गोष्ठियों में जाता ज़रूर, लेकिन सब कोई उसे गधा समझते थे पर घास नहीं डालते थे।
बाद में कई बार उसके द्वारा गोष्ठियों में पढ़ी गई रचनाएँ, सर्वमान्य दिग्गजों द्वारा अमान्य कर दी गयीं।
वह हीन भावना से ग्रस्त हो जाता किन्तु कुछ और बेहतर लिखने की कोशिश करता रहता। कभी-कभार पत्रिकाओं को भी प्रकाशनार्थ भेज देता।
दो वर्ष के अंतराल के बाद एक दिन सहित्यकार "क" ने उसे बताया कल गोष्ठी में कई लेखक तुम्हें भला-बुरा कह रहे थे। आजकल तुम आते नहीं। तुम्हारी घटिया रचनाओं को बढ़िया पत्रिकाओं में कैसे स्थान मिल जाता है?
अगले दिन "ख" ने उससे भेंट की। "साहित्य जगत में तुम्हारी चर्चा है तुम बहुत घमंडी हो गए हो। रचनाएँ छपने से कुछ नहीं होगा। लेखकों के बीच उठना-बैठना चाहिए।"
उसके कार्यालयीन मित्र ने सूचना दी, "तुम्हारी उस रचना पर कई नेता बहुत नाराज़ हैं। शायद तुम्हारे विरुद्ध कोई कार्यवाही भी हो जाये!"
रचना के आधार पर कुछ दिनों बाद उसके विरुद्ध शासकीय कार्यवाही होने लगी। वह आश्वस्त हो गया "उसकी प्रतिभा का समुचित स्वागत होने लगा है।"
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