प्रतिशोध की अग्निपरीक्षा
काव्य साहित्य | कविता सिद्धार्थ 'अजेय'15 Jan 2020 (अंक: 148, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
भोर लाल सराबोर हुई
मिट्टी भभक रही कल से
नाभि का अमृतकलश भी
फोड़ा जाएगा छल से,
पाप-पुण्य से सजग हैं
ईर्ष्या से मूर्च्छित सब हैं
नाश से बाधित विवेक है
मृत्यु के सेवक सब हैं।
सूरज हर क्षण जलता क्यों है
चाँद इतना शीतल क्यों है
वर्षा बाधित हैं कर्मकांड
धर्मराज मौन क्यों तब हैं।
काटो सबके सर को धड़ से
जो बोलेगा उसको जड़ से
आँख तनिक भी खुल जाए जो
तुरंत उठा दो इन्हें भूतल से।
प्रतिशोध अब धधक रहा है
वसुधा के प्रत्येक कण से
है अग्निदेव की अग्निपरीक्षा
प्रतिपल सीता के तप से।
नाश जगह लेगा अमृत की
वक्षस्थल बींधे जाएँगे ,
चीरहरण स्वयं करेंगे पांडव
कौरव भी मज़े उठाएँगे।
व्याकुलता कृष्ण को होगी तब
और श्रीराम पतित हो जाएँगे।
कायर कहलाएँगे वीर पुरुष
तब राक्षस महान बन जाएँगे।
वसुधा को तुच्छ कहा जाएगा
ममता को मृत माना जाएगा,
दश आनन वाले बनेंगे सब
किंतु रावण तब पछताएगा।
कौशल्या भी चिंतित होंगीं
गंगा पर पाप चढ़ेगा सब
गुरु द्रोण भी कुंठित होंगे
अर्जुन से शिष्य रोएँगे तब।
इतिहास गवाह बन जाएगा
भूगोल बदलता जाएगा
ग्रहों की दिशा भी बदलेगी
श्मशान नज़र बस आएगा।
यह होगा केवल अंतिम तक ही
तब क्रोध प्रतिशोध भी जागेगा
धूमिल होगी जब छवि धरा की
ब्रह्मास्त्र गांडीव पर तन जाएगा॥
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