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प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 003

1.
कुछ न बोलूँगी मैं
तू ही पढ़ ले पिया...
इन
नैनों की भाषा,
रसीली बोलियाँ....!
 
2.
दिमाग़ और दिल में
अनबन चल रही है....
एक कहता है
'भूल जा...'
और दूजा,
'कभी नहीं...!'
 
3.
तासीर-ए-वफ़ा
इसमें ढूँढ़ो नहीं....
ये शोहरत है
भाई !
किसी की नहीं....।
 
4.
अश्क
ग़म के, न जाने
कितने पिए....
ख़ुशी के
न रुके, वो
छलक ही गए....!
 
5.
चाहे
दिल में हो दर्द,
पर, लबों
पे हँसी है..…
हमें, अश्क
पीने की,
आदत पड़ी है...!
 
6.
तमाम उम्र
संग चले,
हाथ
कुछ न लगा...
तेरा साथ
न जाने क्यों, 
हमें न फबा....!
  
7.
यूँ तो
कहानी, ये
मेरी ही है....
किरदार पर
तुमसे, भी
मिलेंगे....
दो घड़ी,
चैन से, साथ
बैठो अगर....
तुम्हारे ही
क़िस्से, सुनाते
दिखेंगे.....!
 
8.
इन
मंज़िलों की
मर्ज़ी, समझ में
न आए....
मैं जितना बढ़ूँ,
ये सरकती
ही जाएँ....!
 
9.
नैनों में
मेरे, अब
समाते नहीं....
कर दिए
ख़्वाब सारे,
तुम्हारे हवाले....!
 
10.
वो दिन, जो
तेरे ख़याल से
शुरू होता है....
हो कितना भी सर्द,
गरमाईश
भरा होता है....!
 
11.
हज़ार
नेमतें मिलीं,
इक पल को
तो ठहर....
सजदे में
सिर झुका,
तू, शुक्रिया
तो कर....!

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