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प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 005

1.
ये हवाएँ, बड़ी
मनचली हो गई हैं.....
मेरी छत के बादल,
तेरे आँगन बरसाएँ !
 
2.
अबला की अब भी
वही है कहानी,
आँचल में दूध...
आँखों में पानी...!
 
3.
बेक़रार दिल, आज
फिर कह रहा—
कहीं ,आँखों से काजल
किसी का बहा है....।
 
4.
किस हाल में हैं
अब
कहें भी तो क्या......
तेरे क़दमों के निशां,
रेत पर
ढूँढ़ते हैं....!
 
5.
है लम्बा सफ़र
क्यों न ,आसान कर लें,
झूठे, सच्चे सही,
कुछ वादें ही कर लें...!
 
6.
हल्का-हल्का सही,
इश्क़ चढ़ने लगा...
वैद्य ढूँढ़े कोई,
कोई दवा तो बताए...!
 
7.
बरसते सावन का
करके बहाना...,
बड़ी फ़ुर्सत से रोए,
तुझे याद करके...!
 
8.
सर्दी की नर्म धूप-सी,
तुम्हारी ये चाहत....
मैं मोम की नहीं,
जाने क्यों पिघल रही हूँ...!
 
9.
भला कैसे मान लूँ
तुम मुझे भूला चुके...,
मैं झूठ कह सकती हूँ
तो क्या.....तुम नहीं!
 
10.
वो भीगी-सी रात
फिर न लौटी कभी....
उसकी याद में
चाहे जितनी,
पलकें भिगो लीं..!
 
11.
कहतें हैं जिसे इश्क़
लगता है ये वही...
न आग में है आग
न पानी में नमी....!
 
12.
दास्तान ए इश्क़
कायनात में घुले...
फिर हम ही रहें,
क्यों धुले के धुले....!

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