प्रेम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. आराधना श्रीवास्तवा8 Jan 2019
छात्रावास के बाहर घंटों
खड़े प्रतीक्षारत
लोगों की
भेदभरी, अर्थपूर्ण दृगाक्षेपों की
अवहेलना कर,
फूलों का गुलदस्ता भेट करना,
खुरदरी घास पर मौन घंटों
टहलना, रूठना, मनाना,
प्रेमपर्व पर तंगहाली में भी
सुहृदों की कृपा से…
उपहारों के ढेर लगाना
प्रेयसी के चेहरे के
अनकहे भावों को पढ़
ख़ुद को उसी अनुरूप ढालना,
स्मित अधरों की मुस्कान पर
स्वयं का बिछ-बिछ जाना,
हर दिन ईद और दिवाली होना
यही प्रेम है!
या
कर्म और फ़र्ज़ की देहरी पर
श्रीमती जी के सामानों की लिस्ट को
देखकर भी अनदेखा कर,
बेवजह सड़कों पर, घंटों टहलना,
स्मृतियों में बाट जोहती,
घरवाली के पनीली आँखों के अथाह,
सागर में गोते लगाना,
अर्पिता समर्पिता को त्योहारों या
सालगिरह पर बिन उपहार,
एक बेड़ी में ही सजते-सँवरते देखना..
निर्वासित को सुवासित,
अभावों को भावों से भरने वाली
निरन्तर प्रेमरस की निर्झरिणी बहाने वाली,
स्रोतस्विनी के…
आह्वान पर खिंचते चले आना,
ही प्रेम है।
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