प्रेम-बीज
काव्य साहित्य | कविता नीतू झा1 Jun 2021 (अंक: 182, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
व्यर्थ ही जाएँगी तुम्हारी सारी बातें
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष,
ऋग्, यजु:, साम, अथर्व .. सब
पड़े रहेंगे एक कोने में
सिद्धार्थ की तरह मैं दूँगी
प्रेम-कमल के बीज कुछ
डाल देना अपने हृदय-सरोवर में
तुम्हारा जीवन महक उठेगा
गुलाब क्यों नहीं ?
नहीं, नहीं।
वे तो काँटों से घिरे होते हैं
कहीं चुभ न जायें तुम्हें
प्रेम जीवन का अमृत है
उसे पिलाऊँगी तुम्हें जी भर
तुम अमर हो जाओगे
फिर तुम्हारे प्यार का रस पीकर
मैं भी अमर हो जाऊँगी।
मेरे प्रिय!
मेरे प्रिय!!
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