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प्रेम पथिक

एक प्रेम बचपन में हुआ था
पुस्तकों से,
जब भी खोला उन्हें
पहुँच गया रहस्य, रोमांच, अहसास
और कल्पना की एक अलग दुनिया में,
उनके माध्यम से ही
मैं परिचित हो पाया साहित्य व समाज की
महान विभूतियों के दर्शन से,
मेरे विचारों एवं व्यक्तित्व निर्माण में जिनकी रही है
एक महती भूमिका,
आज भी सबसे ज़्यादा
सकून पाता हूँ मैं उनकी ही शरण में जाकर,
आज भी क़ायम है
मेरा वो प्रेम पुस्तकों से बचपन की तरह निश्छल।
 
एक प्रेम अब हुआ है इस उम्र में
तुमसे,
जब भी देखा तुम्हें दिल धड़क गया ज़ोरों से,
सोचा तुम्हें तो
ख़्वाब बुन डाले सुहाने कई,
लिखा जो कभी
तो रंग दिए प्रेम से आसमान कई,
मेरी बेचैनियाँ सकून 
पाती हैं तेरे ख़्यालों में अक़्सर
और मेरी ख़ुशियाँ
माँगती हैं तेरी मौजूदगी ज़िंदगी में अद्यतन।

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