प्रेम (रजत रानी मीनू)
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रजत रानी मीनू15 Sep 2020
वह उससे करता था
प्यार की बातें
प्रेम तो वह भी करती थी उससे बेइहंता
जब जब वे मिलते थे
वह उसके निकट आना चाहता था
और वह उससे दूरी बनाए रखना चाहती थी
क्योंकि वह मर्यादा
जानती थी अपनी, उसकी और समाज की
वह निकटता को प्रेम की दुहाई देता था
वह सचमुच उससे
प्रेम करती थी दूर रह कर भी
उसकी सलामती चाहती थी
मगर–
वह उससे निकटता को प्रेम
कह रहा था
झगड़ा हो रहा था रिश्ते बनने से पहले ही
रिश्ते टूट से रहे थे
प्रेम की रेस बढ़ती जा रही
चूहा-बिल्ली की दौड़
जारी थी उनके बीच
समय गुज़र गया था जैसे
गुज़र जाती है ट्रेन
वे गंतव्य पर पहुँच भी गये थे
मगर–
वह प्रेम को तलाश रही थी अभी भी
रिश्ते बन रहे थे
वह प्रेम को रेगिस्तान में
पानी की तरह ढूँढ़ रही थी॥
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