पूरे चाँद की रात
काव्य साहित्य | कविता विजय कुमार सप्पत्ति4 Aug 2014
आज फिर पूरे चाँद की रात है;
और साथ में बहुत से अनजाने तारे भी हैं...
और कुछ बैचेन से बादल भी हैं ..
इन्हें देख रहा हूँ और तुम्हें याद करता हूँ..
ख़ुदा जाने,
तुम इस वक़्त क्या कर रही होगी…..
ख़ुदा जाने,
तुम्हें अब मेरा नाम भी याद है या नहीं..
आज फिर पूरे चाँद की रात है !!!
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