प्यार
काव्य साहित्य | कविता विकास वर्मा25 Nov 2014
तुम अक्सर पूछती हो मुझसे - क्या होता है प्यार,
क्या होते हैं प्यार के मायने?
देखकर तुम्हें जो आ जाती है चमक मेरी आँखों में,
उस चमक में ही तो झलकता है प्यार का नूर।
तलाशता रहता हूँ तुममें जो सार्थकता अपनी,
उस तलाश में ही तो छिपे हैं प्यार के मायने।
तुम्हारे माथे पे लहराती ज़ुल्फ़ को छू भर लूँ एक बार,
और चूम लूँ फूल की पंखुड़ियों-सी तुम्हारी पलकों को,
इस मासूम तमन्ना में ही तो बसी है प्यार की ख़ुशबू।
कर दूँ क़ुर्बान अपना सब कुछ तुम्हारी एक मुस्कान पर,
इस दुआ में ही तो रोशन है प्यार की लौ।
ज़र्रा-ज़र्रा अपने वज़ूद का लुटा दूँ तुम्हारे कदमों पर,
और मिटा दूँ ख़ुद को तुम्हारे सजदे में हमेशा के लिए,
इस ख़्वाहिश में ही तो समाया है प्यार का एहसास....।
असल में,
प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती,
उसे तो बस महसूस करना होता है,
और वो दिखाई देता है बस प्यार करने वाले की आँखों में.....।
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