प्यास
काव्य साहित्य | कविता पारुल 'पंखुरी'1 Jan 2017
प्यासी हूँ
मन के सहरा में
भटकते भटकते
मरूद्यान तक पहुँची
मगर नीर नमकीन हो गया
मेरे आँसुओं ने साझेदारी
कर ली
उस उदास झील से,
और भटकूँगी
भटकना चाहती हूँ
तब तक
जब तक
तेरे हाथों से वो पानी
झरना बन के
मुझे भिगो न दे
तभी तृप्त होगी
तन, मन और आत्मा।
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