प्यासी चिड़िया
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता महेन्द्र देवांगन माटी1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
देख रही है बैठी चिड़िया, कैसे अब रह पायेंगे।
काट रहे सब पेड़ों को तो, कैसे भोजन खायेंगे॥
नहीं रही हरियाली अब तो, केवल ठूँठ सहारा है।
भूख प्यास में तड़प रहे हम, कोई नहीं हमारा है॥
काट दिये सब पेड़ों को तो, कैसे नीड़ बनायेंगे।
उजड़ गया है घर भी अपना, बच्चे कहाँ सुलायेंगे॥
चीं चीं चीं चीं बच्चे रोते, कैसे उसे मनायेंगे।
गरमी हो या ठंडी साथी, कैसे उसे बचायेंगे॥
छेड़ रहे प्रकृति को मानव, बाद बहुत पछतायेंगे।
तड़प तड़प कर भूखे प्यासे, माटी में मिल जायेंगे॥
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