अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

क़िस्मत की आवाज़

एक था लाला पूरा कंजूस और मक्खीचूस लाला के गाँव में होली बहुत धूम-धाम से मनायी जाती थी बच्चे गाँव भर से चंदा जमा कर चौपाल के सामने होलिका सजाते थे लाला कभी एक पैसा चंदा नहीं देता लेकिन होली तापने सबसे पहले पहुँच जाता था।

पिछले साल कुछ बच्चे उसके घर चंदा माँगने पहुँच गये तो लाला ने उन्हें एक कोठरी में बंद कर दिया बहुत रोने-धोने पर उन्हे दो घंटे बाद छोड़ा था इससे गाँव के बच्चे लाला से बहुत ताव खाये हुये थे 

एक सप्ताह बाद होली थी उसका कार्यक्रम तय करने के लिये आज गाँव के बच्चे चौपाल में जमा हुये। 

"यह कंजूस लाला चंदा कभी नहीं देता है लेकिन अकड़ बहुत दिखाता है इसका कोई उपाय सोचना होगा," रमेश ने मुट्ठिया भींचते हुये कहा पिछले साल लाला ने उसे भी कोठरी में बंद किया था।  

"चिंता मत करो इस बार लाला जी ख़ुद चल कर चंदा देने आयेगें," गोपाल ने मुस्कराते हुये कहा और फिर अपनी योजना सबको समझाने लगा।

उस रात जब लाला खर्राटे भर कर सो रहा था तब कुछ आहट पा कर उसकी आँख खुल गयी अँधेरे में कुछ दिखायी नहीं पड़ रहा था  तभी एक घरघराती हुयी आवाज़ सुनायी पड़ी, "लाला, तुम्हारे ऊपर धन की बरसात होने वाली है उठो और कान पकड़ कर पाँच बार उठक-बैठक लगाओ उसके बाद तुम्हें अपने दरवाज़े पर सौ का नोट पड़ा मिलेगा।"

लाला ने चौंक कर इधर-उधर देखा बगल में उसकी बीबी घोड़े बेच कर सो रही थी उसके अलावा कमरे में और कोई न था। लाला को लगा कि शायद उसने सपने में यह आवाज़ सुनी थी अतः चुपचाप आँख बंद कर लेट गया।

थोड़ी देर बाद वही घरघराती हुयी आवाज़ फिर सुनायी दी, "लाला, मैं तुम्हारी क़िस्मत हूँ अगर मेरा कहना मानोेगे तो प्रतिदिन तुम्हारा इनाम बढ़ता रहेगा और जल्दी ही तुम्हें लाखों रुपये मिल जायेगें अगर तुम मेरा कहना नहीं मानोगे तो तुम्हारा सब कुछ बर्बाद हो जायेगा।"

लाला लालच में आ गया सोचा बंद कमरे में उठक-बैठक लगाने में कोई बुराई नहीं है उसने कान पकड़ कर उठक-बैठक लगायी और फिर दरवाज़ा खोल कर देखा सामने ही 100 का नया नोट चमचमा रहा था उसने नोट को उठा कर चूम लिया 

अगली रात लाला को फिर वही घररघराती हुयी आवाज़ सुनायी पड़ी, "लाला, सुबह 4 बजे मंदिर के बाहर खड़े हो कर अपने गाल पर ज़ोर-ज़ोर से 5 तमाचे मारना उसके बाद घर लौटोगे तो तुम्हें 200 रुपये मिलेगें याद रखना इसी तरह तुम्हारा इनाम बढ़ते-बढ़ते लाखों रुपये का हो जायेगा।"

लाला को क़िस्मत की आवाज़ पर पूरा भरोसा हो चुका था उसने सोचा कि सुबह के 4 बजे गाँव वाले सो रहे होंगे इसलिये उसे अपने को झापड़ मारते कोई देख नहीं पायेगा चार बजे उसने मंदिर पहुँच कर खींच-खींच कर अपने 5 तमाचे मारे और फिर घर की ओर दौड़ पड़ा दरवाज़े पर ही सौ-सौ के दो नोट उसका इंतज़ार कर रहे थे लाला की बाँछे खिल उठीं।

अगली रात लाला को चौपाल में मुर्गा बनने पर 300 रुपये और उसकी अगली रात स्कूल के सामने कुत्ते की तरह भौंकने पर 400 रुपये मिले अब तो लाला की पाँचों उँगलियाँ घी में थीं उसे पूरा विश्वास था कि जल्द की उसे लाखों रुपये मिलने वाले हैं।

अगली रात लाला को क़िस्मत की आवाज़ फिर सुनायी पड़ी, "लाला, परसों होली है अगर कल तुम गाँव के बच्चों को 5000 रुपये चंदा दे दो तो होली की रात तुम्हें 5 लाख का बम्बर इनाम मिलेगा।"

लाला को अब तक क़िस्मत की आवाज़ पर पूरा विश्वास हो चुका था अगले दिन वह 5000 की गड्डी लेकर बच्चों के पास पहुँचा। 

"न, लाला जी, न हम आपसे चंदा नहीं ले सकते," गोपाल रुपयों की गड्डी देख कर यूँ उछला जैसे साँप देख लिया हो।

"बेटा, मुझसे चंदा क्यों नहीं लोगे?" लाला ने थूक निगलते हुये पूछा उसे अपना कलेजा बैठता हुआ महसूस हुआ।

"क्योंकि जो आपसे चंदा माँगता है उसे आप कोठरी में बंद कर देते हैं हमें दोबारा नहीं बंद होना है आपकी कोठरी में," रमेश ने कहा और सारे बच्चे वहाँ से उठ कर चल दिए।

"अरे, बेटा रुको-रुको मेरी बात तो सुनो," लाला अपनी धोती सँभालते हुये बच्चों के पीछे-पीछे दौड़ा। 

उसने बच्चों की बहुत ख़ुशामद की तब वे इस शर्त पर राज़ी हुये कि लाला को पिछले साल के बकाया चंदे के रूप में भी 1000 रुपये देने होंगे। मरता क्या न करता, लाला को हामी भरनी पड़ी। बच्चों ने उन रुपयों से होलिका को दुल्हन की तरह सजा दिया।

उस रात दो बजे लाला को फिर वही घरघराती हुयी आवाज़ सुनायी पड़ी, "शाबाश लाला, तुमने बहुत अच्छा काम किया है। अब थोड़ी ही देर में तुमको 5 लाख का इनाम मिलने वाला है। उठो और केवल एक लंगोटी पहन कर नाचते हुये चौपाल तक जाओ और होलिका की परिक्रमा कर लौट आओ उसके बाद तुम्हारी क़िस्मत बदल जायेगी।"

इतनी रात में होलिका के पास कोई नहीं होगा लाला ने फ़ौरन अपने कपड़े उतारे और केवल एक लंगोटी पहन नाचते हुये होलिका की ओर चल दिया। इस समय अगर कोई उसे देख लेता तो हँसते-हँसते पागल हो जाता। ऐसा लग रहा था जैसे कोई नंग-धड़ंग डायनासोर लंगोटी पहन कर उछल-कूद रहा हो।  

होलिका की परिक्रमा करने के बाद लाला अपने घर की ओर दौड़ पड़ा। दरवाज़े पर ही एक बैग रखा हुआ था। लाला की आँखें चमक उठीं। उसने जल्दी से बैग खोला उसमें एक पत्र और एक लिफ़ाफ़ा रखा हुआ था लाला ने पत्र पढ़ना शुरू किया।

 

आ. लाला जी,

सदा प्रसन्न रहें इस लिफ़ाफ़े में 5 फोटो रखी हुई हैं। इन्हें आप एक-एक लाख रुपये का चेक समझिय॥ अभी भी वक़्त है सुधर जाइये और गाँव वालों को लूटना बंद कर दीजये। वरना मैं इन चेकों को कैश करवा दूँगा; मेरा मतलब है कि इनके बड़े-बड़े प्रिंट निकलवा कर, आस-पास के गाँवों और आपकी सभी रिश्तेदारियों में बँटवा दूँगा। अगर आपका व्यवहार अच्छा रहा तो मैं वादा करता हूँ कि फोटुओं का राज़ हमेशा मेरे सीने में दफ़न रहेगा।

                                    आपका "शुभचिन्तक"

 

लाला ने धड़कते दिल से लिफ़ाफ़े को खोला। उसमें रखी फोटुओं को देख उसका कलेजा मुँह को आ गया। किसी फोटो में वह मुर्गा बना हुआ था तो किसी में अपने झापड़ मार रहा था। किसी में कान पकड़ कर उठक-बैठक लगा रहा था तो किसी में वह कुत्ते की तरह भौंक रहा था। आख़िरी फोटो में लिखा था कृपया पीछे देखिये।

लाला ने काँपते हाथों से फोटो पीछे पलटा उस पर लिखा था ‘लाला जी, आज आपने गाँव की गलियों में जो कैबरे डांस किया है, उसकी फोटो कल तक आ जायेंगी। मैं जिस पाईप को लगा कर आपके कमरे में आकाशवाणी किया करता था, वह आपके घर के पिछवाड़े में पड़ा हुआ है।  आप चाहें तो तब तक उससे अपना दिल बहला सकते हैं।"

लाला को काटो तो खून नहीं वह समझ गया कि बच्चों ने उससे हिसाब बराबर कर लिया है। डर के कारण उस दिन से लाला का व्यवहार बदल गया। शाम को उसने गाँव वालों को बुला कर गुझियाँ खिलायीं और लोगों को ठगना छोड़ दिया। 

गोपाल और उसके साथियों ने भी अपना वादा निभाया और लाला के राज़ को हमेशा राज़ ही रखा।


 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

आँगन की चिड़िया  
|

बाल कहानी (स्तर 3) "चीं चीं चीं चीं" …

आसमानी आफ़त
|

 बंटी बंदर ने घबराएं हुए बंदरों से…

आख़िरी सलाम
|

 अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

सांस्कृतिक कथा

लघुकथा

किशोर साहित्य कहानी

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

बाल साहित्य कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं