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राह दिखाएँ भी क्यों

ग़म-ए-फ़ुर्क़त उन्हें हम सुनाएँ भी क्यों
दीदा -ए-तर सबको अपने दिखाएँ भी क्यों
 
दिल जिनका बेख़ुश्बू सा है गुलज़मी
रायगाँ ऐसी जगहों पर जाएँ भी क्यों
 
तमाम ख़ुशियाँ हैं जो करती हैं रौशन ये दिल
तेरे बेरूख़ी के अज़ाबों से दिल डराएँ भी क्यों
  
ज़माना निहायत नेक दिल को भी बख़्शता नहीं
ख़ुद को ज़माने की बातों में हम उलझाएँ भी क्यों
 
है काफ़ी मेरी मासूमियत तुझे जलाने के लिए
बेवज़ह मेरे अदू तुझसे टकराएँ भी क्यों
 
जिन्हें नफ़रत के जंगल में है भटकना मंज़ूर
प्यार के चराग़ से उनको हम राह दिखाएँ भी क्यों

 

फ़ुर्क़त=जुदाई, दूरी; दिदाए तर=आँसुओं से भीगी आँखें; रायगाँ=फ़िज़ूल में; अदू=दुश्मन

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टिप्पणियाँ

Aashi... 2021/08/20 07:35 AM

Wow mam it's so amazing...

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