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रास्ता किधर है

उस दिन स्कूल से वापस लौट कर आई तो देखा घर पर ताला लगा हुआ था। मैंने झट मोबाइल बैग से निकाल बेटी बबली को कॉल किया। बबली का मोबाइल स्वीच ऑफ़ था। इसके पहले बबली कभी भी इस वक़्त घर से बाहर नहीं रहती थी। उल्टा मेरे बैल बजाने के पहले वह दरवाज़ा खोल देती थी। मैं अक्सर पूछती तुम्हें कैसे पता चलता है कि मैं आ गई हूँ। पर इसका उसके पास कोई जबाव नहीं होता था। मैंने सोचा शायद वह कॉलेज से अभी लौटी नहीं है। पर दो बजे तक कॉलेज से वापस लौट आती थी। कभी देर नहीं की थी। जैसे-जैसे समय बढ़ता जा रहा था। डर भी बढ़ता जा रहा था। आज के समय में हर रोज़ लड़कियों के ऊपर होते जुर्म की ख़बर सुन-सुन कर कौन माँ-पिता अपनी बेटियों को लेकर चिंता में नहीं हैं। हे भगवान! सब कुछ ठीक-ठाक रहे। मन अपने आप ही तसल्ली देती किसी सहेली के यहाँ गई होगी। हो सकता है मोबाइल की बैटरी डाउन होने की वज़ह से स्विच ऑफ़ हो गया हो।

दरवाज़े के बहार खड़ी मैं सोचती रही। इस तरह घर के बाहर मुझे खड़ा देख पड़ोसी ने मुझसे, "पूछा क्या बात है मैडम कोई परेशानी है?"

"हाँ, मुझसे कहीं चाबी खो गई।"

वह मुझसे बिना कुछ पूछे हाथ में हथौड़ा ले आया तीन बार ऊँची साँस लेकर उक, उक की आवाज़ कर ताले को दे दना-दन ज़ोर से मार-मार कर तोड़ डाला था।

अंदर घर में अकेली मैं काफी देर तक बबली का इंतज़ार करती रही। जब भी दरवाज़े की तरफ़ देखती ऐसा लगता बबली आ गई है। रह-रह कर उसे फ़ोन ट्राई करती रही। मगर जब आख़िर तक बबली का फ़ोन नहीं मिला तो उसकी सहेलियों को फ़ोन लगाना शुरू किया। सबने यही कहा की बबली मेरे साथ नहीं है। मुझसे ही सारे सवाल कर बैठते क्यों बबली कॉलेज से अभी लौटी नहीं क्या? मेरे ऊपर ही ऐसा सवाल खड़ा कर देते कि जिसका मेरे पास कोई उत्तर नहीं होता। फ़ोन काटने के पहले बस इतना ही कहती, "नहीं ऐसी कोई बात नहीं सब ठीक है।" भला यह भी कोई जबाब दे रही थी। सही मायने में सच का जबाब तो मेरे पास ही था।

डब्लू, हाँ कहीं डब्लू के साथ तो नहीं चली गई। नहीं मुझे बबली पर पूरा भरोसा है। वह ऐसा कभी नहीं करेगी। मगर भरोसा एक क्षण में ढह गया। जैसे एकाएक बाढ़ आई हो और घर को ढा गयी हो। सुन्दर से बसते घर को रेगिस्तान में तबदील कर गयी हो। हाँ डब्लू बाढ़ ही तो था। रिमझिम सा वह बरसना शुरू हुआ था। बस धीरे-धीरे बरसता हुआ आज बाढ़ की तरह सब कुछ ढा के ले गया।

पहली बार कभी बबली ने मुझसे इतना भर कहा था कि माँ डब्लू मेरी सहेली का भाई है। फ़र्स्ट क्लास बी.एससी. है। अपनी बहन और मुझे नोट्स लिख कर दे रहा है। फिर कई दफ़ा वह घर में भी आ जाता था। बबली मुझे पहले कह देती मम्मी डब्लू आ रहा है। कुछ सब्जेक्ट के बारे में पूछना है। उसके आते ही बबली किताब खोल कर बैठ जाती थी। मैं भी यही सोचती कि चलो लड़का बेटी की मदद कर रहा है। मैं उसके आने के बाद चाय नाश्ता तैयार करने रसोई चली जाती। सही मायने में बबली को कभी टयूशन की ज़रूरत पड़ी ही नहीं थी। वह तो छोटी से ही अपने हर क्लास मैं टॉपर रही थी। उसके दोस्त यार सभी को वह पढ़ा देती थी। आज भी उसके स्कूल में उसकी फोटो लगी हुई है। हर माता-पिता मुझसे यही कहते अगर लड़की हो तो बबली की तरह हो। आज हर एक के मुँह से यही सुनती हूँ क्या ख़ाक टॉपर थी। यही शिक्षा हासिल की थी उसने कि माँ के मुँह पर कालिख पोत दे। गलती तो मेरी थी जो एक जवान लड़की को एक जवान लड़के के साथ इतनी खुली छूट दे दी थी। घर में डब्लू के आने के बाद भी में बाज़ार हाट करने चली जाती थी। इस बात की परवाह किये हुए कि एक जवान लड़की किसी लड़के के साथ है। इतना भी नहीं समझ पाई कि बचपन से भी ज़्यादा अब उसकी देख-रेख की ज़रूरत है। मैं तो बस यही समझती रही बबली बड़ी हो गई है, समझदार हो गई है। अपनी ज़िम्मेदारियों को समझती होगी। आज समझ में आया कि क्यों माँ बाप बेटियों को इतनी छूट नहीं देते है। मगर मैं यही सोचती कि जैसे मैं कैद में जीती रही, मेरी बेटी कभी ऐसा महसूस ना करे। मुझे याद है जब मैं सोलह साल की थी। माँ-पापा कितने सख़्त थे। दरवाज़े में भी खड़ी हो कर खुली साँस नहीं ले पाती थी। दसवीं के बाद ही पापा मेरी शादी करने की बात करने लगे थे। मगर दादा जी की वज़ह से कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी की थी। वह भी कड़ी देख-रेख में, भईया स्कूटर में कॉलेज छोड़ कर चले जाते और कॉलेज ख़त्म होने के आधे घंटे पहले कॉलेज के बाहर आकर खड़े हो जाते थे। काश कि एक ताला बबली पर भी लगा कर रखती। उसकी चाबी अपने पास रखती। अपने हिसाब से ही ताला खोलती। वही बात आ गई ना हर तरफ़ सब यही कहने लगे आप ने तो बबली को पूरी छूट दे रखी थी। लड़की को इतनी आज़ादी देनी ठीक नहीं होती है। बच्ची पर तो भरोसा किया जा सकता है पर जवानी पर नहीं। कितने तो मेरे पीठ पीछे यह कहते कि बबली की मम्मी को सब कुछ पता था। लड़का घर आकर बबली के साथ बैठा रहता था। उसकी सहमति से ही यह सब हुआ है। मगर मैंने यह एकदम भी अंदाज़ा नहीं लगाया था। बबली उस काले से लड़के से प्यार कर बैठेगी। ना शक्ल ना सूरत। बबली के सामने तो वह बबली के नौकर से कम नहीं लगता था। फिर कहाँ वह गाँव का रहने वाला था। वह तो बबली का भाई कॉलेज की छुट्टियों में घर आया था। मोबाइल में उसने एक दो आये मैसेज पढ़ लिये थे। बबली से पूछ-ताछ करने लगा था। उसने मुझसे पूछा था - "मम्मी यह डब्लू कौन है?"

"बबली की सहेली का भाई है। बबली की पढ़ाई में मदद कर रहा है।

वह मेरे ऊपर भी चिल्ला पड़ा था। उसने झट अपने पापा को फ़ोन कर दिया था। जिसकी परछाई भी नहीं चाहती थी कि मेरे बच्चों पर पड़े। इस बात से अनजान थी आख़िर खून तो उन्हीं का है। बबली के पापा ने ब्याह के बाद भी किसी औरत से नाजायज़ सम्बन्ध रखा था। हम दोनों की उस औरत की वज़ह से कभी बनती नहीं थी। वह उस औरत के पास ही ज़्यादा रहता था। क्योंकि मैंने साफ कह दिया था मैं आप से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती हूँ। मगर पूरी तरह नहीं तोड़ पाई थी मैं उनके साथ रिश्ता। क्योंकि कहीं ना कहीं आकर मुझे उसकी ज़रूरत पड़ ही जाती थी। बेटे की बात सुनते ही बाप का फ़र्ज़ अदा करने आ गये थे। आते ही बबली को तमाचा जड़ने लगे थे। मैं नहीं चाहती थी बबली को इस तरह कोई मारे। मैं उसके बचाव के लिए बीच में आ गई थी। मगर उसका गुस्सा मुझ पर उतारने लग गये थे।

"सब तुम्हारी वज़ह से हुआ है। तुमने ही उस लड़के को घर में घुसने दिया था। तुम्हें कुछ समझ नहीं आया।"

उसने मुझे धकेल कर बिस्तर में गिरा दिया था। समझ तो मैं आप को भी न पायी थी। बिजनेस का बहाना कर एक-एक सप्ताह फिर महीनों बाहर रह कर आते थे। घर आकर भी इनका घर में मन नहीं लगता था। बच्चों पर भी प्यार नहीं आता था। जैसे पराये बच्चे हों। इस वज़ह से मैंने इसे तलाक़ देने की सोच ली थी। मगर जब मैंने पापा से इनको तलाक़ देने की बात कही, पापा ने मुझसे कहा, "बेटा अब जैसा भी है इनके साथ ही दिन पार करो। भूल जाओ सब कुछ और, अपने बच्चों के भविष्य पर ध्यान दो। तुम्हारे इस तरह करने से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़़ेगा। फिर इसकी क्या गारंटी है कि दूसरा विवाह सफल रहे।"

क्या बिना मर्द के एक स्त्री ज़िंदगी नहीं जी सकती है? चाह कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी। फिर मैंने अपने बच्चों के भविष्य के लिए स्कूल में नौकरी पकड़ ली थी। बबली के पापा, अभिषेक से साफ कह दिया था। आप फैसला कर लीजिए की मेरे साथ रहना है या उस रखैल के साथ। अगर आपको वह ज़्यादा अच्छी लगती है, फिर मेरे पास कभी मत आइयेगा। मगर चाह कर भी ऐसा नहीं हुआ था। वह कभी दो-चार दिन मेरे साथ तो कभी उसके पास चले जाते थे। बच्चे जब बड़े हुए तो हमेशा पापा के बारे में पूछते, मम्मी पापा कुछ दिनों के लिए ही क्यों आते हैं? मैं बच्चों से यही कहती रही पापा का काम बाहर ज़्यादा रहता है।

आज आ गये थे बाप का फ़र्ज़ निभाने के लिए। वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे। बबली का मोबाइल लेपटॉप सब कुछ उससे ले लिया गया था। इसका कॉलेज जाना भी बंद। बबली का कोर्टमार्शल शुरू हो गया था जैसे। कहाँ मिला था वह लड़का, कैसे जानती हो उसे, वग़ैरह वग़ैरह.....। सच में आख़िर यह बबली को कहाँ मिल गया था। बबली गर्लस कॉलेज में पढ़़ती थी। बाहर कहीं टयूशन भी नहीं पढ़ने जाती थी।

एक-एक कर बबली ने सच्चाई खोल दी थी। वह उसकी किसी सहेली का भाई नहीं था। बी.एससी. फ़र्स्ट क्लास भी नहीं था। बी.कॉम से ग्रेजुएट होकर किसी प्राइवेट कम्पनी के एकाउन्ट्स विभाग में काम कर रहा था। फ़ेसबुक के ज़रिये दोस्ती हुई थी। चैटिंग के द्वारा बातचीत शुरू हुई थी। तब जाकर मैं उस दिन जान पाई थी बबली घंटों लेपटॉप पर क्यों बैठी रहती थी। इतना कभी सोचा भी नहीं था कि बिना किसी से मिले, देखे बिना भी प्यार हो सकता है। ज़माना इतना बढ़ गया है। बिना एक दूसरे को समझे-जाने बिना कोई कैसे दिल दे सकता है। बबली के पापा बबली से सवाल किये जा रहे थे, "तुम्हारा उसके साथ फ़िज़ीकल रिलेशनशिप तो नहीं था।" शर्म से बबली का सिर झुक गया था। एक पिता को इस तरह के सवाल करते हुए ज़रा सी भी शर्म नहीं आ रही थी। शर्म आख़िर किस बात की होती? कभी पिता की तरह बच्चों के साथ रहे ही नहीं थे। शर्म नाम की चीज़ होती तो कभी एक लड़की के पिता होने के बाद किसी पराई औरत से सम्बन्ध रखते। रात बारह बजे तक बबली से सवाल जबाब चलता रहा।

उस रात ही बबली के अंदर ऐसे गुस्से ने घर कर लिया कि उसे हम सबसे सदा के लिए नफ़रत सी हो गई थी। उस दिन उसके दिल में डब्लू के प्रति प्यार और गहरा हो गया था। उसे अपने भाई, माँ और पापा से कहीं ज़्यादा चाहने वाला डब्लू लगा था। धीरे-धीरे हम सब की नफ़रत ने इसे और सींच-सींच कर बड़ा कर दिया था। सुबह निकलने के पहले पापा बबली के भाई से कह गये इस पर पूरी नजर रखना कोई मोबाइल लेपटॉप ना यूज़ करने पाये। एक वक़्त था जब बबली ने अपने भाई प्रबल के बारे में कहा था, माँ हॉस्टल में किसी को कहिए कि इस पर पूरी नज़र रखे। मगर यह बबली ने उसकी भलाई के लिए कहा था। कॉलेज के हॉस्टल से फ़ोन आया था कि प्रबल की तबीयत खराब हो गई है। मैं प्रबल को घर ले आई थी। एक दम पागलों की तरह व्यवहार करने लगा था प्रबल। डाक्टरों द्वारा टैस्ट के बाद पता चला वह किसी नशीली चीज़ का सेवन कर रहा था। अभी-अभी शुरूआत की है इसने जिसकी वज़ह से सिर पर चढ़ गई है। मैं और बबली तीन महीने तक प्रबल की इलाज और सेवा में लगे रहे थे। मैंने यह सोच लिया था कि उसे चंडीगढ़ नहीं भेजूँगी। मगर बबली ने ही मुझे कहा था, "नहीं माँ इससे प्रबल का केरियर खराब हो जाएगा। बस आप कॉलेज में इसकी निगरानी रखने के लिए कहिये।"

पापा के जाने के बाद ही प्रबल ने बबली को कहा, "उस लड़के का नम्बर मुझे दे।"

बबली ने देने से इनकार कर दिया था। वह बबली पर हाथ उठाने लगा। मेरे मना करने पर भी वह नहीं मान रहा था। बबली से कहने लगा अगर वह तुम्हें प्यार करता है, तो उसे अभी बोल यहाँ आने के लिए। बबली ने गुस्से से डब्लू का नम्बर दे दिया था। प्रबल ने पहले अपने दोस्तों को फ़ोन किया। उसके बाद उसने डब्लू को फ़ोन कर घर आने के लिए कहा। मगर डब्लू नहीं आया था। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि डब्लू बबली की तरह प्यार में पागल नहीं है कि अपने होशोहवास खो पागलों की तरह भागा चला आयेगा। वह वक़्त की नजाकत को पहचानता था कि कब क्या करना है? वह सब कुछ समझ गया था कि मामला कुछ गड़बड़ है। वह जब नहीं आया तो प्रबल ने बबली से कहा डरपोक नहीं आया।

तीन महीने तक बबली को कॉलेज नहीं जाने दिया गया था। प्रबल अपना कॉलेज सब कुछ छोड़ कर बबली निगरानी करता रहा था। एक माँ होने के नाते और मेरे अदंर एक स्त्री का दिल होने के नाते बबली के ऊपर इस तरह का अत्याचार नहीं देख सकती थी। और फिर इसकी क्या गारंटी थी कि बबली का ब्याह अगर हम अपनी पसंद के लड़के से कर दें तो वह ख़ुश रहेगी। आख़िर मैंने जो मम्मी-डैडी की मर्ज़ी से ब्याह किया तो कौन सा ख़ुश रह सकी। अगले दिन ही उसे समझाने के लिए कमरे में गई थी वह गुमसुम सी टीवी में आशिकी फिल्म का गाना सुन रही थी "जाने जिगर जाने मन, तुझको है मेरी कसम, तू जो मुझ ना मिली मर जाऊँगा मैं सनम........." जैसे वह उस फिल्म के हीरो के साथ अपना दुख बाँट रही थी। मैंने बबली से टीवी बंद करने की इज़ाज़त लेते हुए टीवी बंद कर दिया था। बड़े प्यार से समझाने की कोशिश की थी- "बेटा तूने मुझसे यह सब छुपाये रखा।"

"नहीं माँ, मैं चाहती थी आप को सब कुछ बताना मगर जब आप मुझे और डब्लू को रूम में अकेली छोड़ दिया करती थीं तो मुझे लगा आप सब कुछ जानती हैं।"

मैं बस बबली का मुँह देखती रह गई थी। इसका मतलब मैं जो बबली पर विश्वास करती थी, वह सब गलत था। मुझे इस तरह का विश्वास नहीं करना चाहिए था।

"देखो बबली ईश्वर ने इंसान को बनाने के साथ एक समाज की रचना की है। ताकि हर इंसान समाज के दायरे में रह कर काम करे। जिसे समाज मंजूरी दे।"

"माँ ईश्वर ने ही एक इंसान को दूसरे से प्रेम करने की नसीहत दी है। समाज में किसी से प्रेम करना कोई गलत नहीं है।"

"मैंने ऐसा नहीं कहा कि प्रेम करना गुनाह है। प्यार का चुनाव सही और सही समय पर होना चाहिए।"

"आप का मतलब क्या है?"

"देख बेटा डब्लू तेरे लायक नहीं है। वह छोटी-मोटी नौकरी कर रहा है। उसका घर गाँव में है। फिर तू पढ़ी-लिखी शहर की लड़की है। अभी तुम्हारा वक़्त पढ़ने-लिखने का है तुम्हें अपने पैरों पर खड़ा होना है।"

उसने मेरी सारी बात मान ली पर डबलू से विवाह ना करने की बात वह मानने को तैयार नहीं थी।

मैंने उसे कहा, "ठीक है अगर तुम्हें डब्लू से इतना प्यार है तो अभी उसे कहो कि वह अच्छी नौकरी की तैयारी करे। शहर में अच्छा घर लेकर तुम्हें रख सके। तुम्हारी सारी ज़रूरतें पूरी कर सके। तुम भी पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनो। क्योंकि पत्नी को हर मोड़ पर अपने पति का हाथ बँटाने के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत ज़रूरी है। उसके बाद तुम उसके साथ ख़ुशी-ख़ुशी ब्याह रचा लेना।"

उसके बाद बबली ने मेरी किसी बात का विरोध नहीं किया था। मैंने बबली के पापा और भाई को भी यह कह दिया कि बबली ने अपनी गलती मान ली है दोबारा उस लड़के से कभी नहीं मिलेगी। बबली दोबारा कॉलेज जाने लगी थी।

बबली दोबारा पढ़ने लिखने लग गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने सब कुछ भुला दिया हो। मगर एक दिन बबली मुझे स्कूल से आकर पूछने लगी- "क्या पापा मेरे लिए लड़का देख रहे हैं?"

मैं एकदम से दंग रह गई। मैंने कहा, "नहीं,ऐसी कोई बात नहीं है। मगर मुझसे तो पापा ने इस विषय में कभी नहीं कहा। तुम्हें किसने कहा?"

"नहीं, मुझे ऐसा लगा था। मम्मी जब आप मेरी शादी डब्लू से करने के लिए तैयार हैं, फिर मेरा मोबाइल, लेपटॉप क्यों मुझसे ले लिया गया है? क्या पापा इस रिश्ते को मंजूर करेंगे?"

"पहले तू अपनी पढ़ाई पूरी कर ले। फिर इस विषय में पापा से बात करेंगे।"

मैंने बबली को उसका मोबाईल और लेपटॉप सब दे दिया था।

अगले दिन ही मैंने बबली के पापा को फ़ोन कर के बुलाया और उनसे कहा, "बबली डर सी गई है।"

"किस बात का डर है?"

"यही कि हम उसकी शादी कहीं और ना कर दें।"

 मतलब वह अभी भी उस लड़के से सम्पर्क कर रही है।"

"देखिए जी, कल को हम बबली का ज़ोर-ज़बरदस्ती से कहीं और ब्याह कर भी दें, फिर वहाँ कुछ ऊँच-नीच हो गई तब भी हम क्या मुँह दिखाने लायक रह जाएँगे?"

"देखो बबली नदान है, उसे अच्छे-बुरे का फर्क नहीं पता है। गाँव में वह कैसे रह पाएगी? ठीक है, मैं उनके घर-बार का पता लगाऊँगा उसके बाद सोचूँगा।"

बबली के पापा ने यार-दोस्तों से कह कर डब्लू के पापा के और उनके खानदान के बारे में पता लगाया। इसके बाद तो वह और बौखला गये। एकदम मुझ पर आकर बरस पड़े।

"देखो आज के बाद उस लड़के का नाम भी इस घर में मत लेना।"

"क्यों क्या हो गया?"

"वह जात के नोनिया हैं। हम ठहरे पंडित। उसका बाप गारे-मिट्टी का काम करता है। लड़का जो थोड़ा बहुत कमाता है। उसी से घर चलता है। मेरे दोस्त तो यह कह रहे थे, अपनी परी जैसी लड़की को इस काले भूंड के हाथों में दोगे। बच्ची नासमझी कर रही है, आप तो समझदार हैं। रिश्ता छोटा और बड़ा दोनों नहीं होने चाहिएँ। अपनी बराबरी का तो होना चाहिए।"

"ठीक है आप बबली को कुछ नहीं कहेंगे। अभी उसकी एम.एससी. हो जाने दीजिए। मैं ख़ुद समझा लूँगी।"

उस दिन मैं स्कूल चली गई। बबली अपने कॉलेज को निकल गई। और दोबारा कभी लौट कर नहीं आई। उसने इतना भी नहीं सोचा कि मम्मी स्कूल से थकी हुई आएगी। तो कहाँ जाएगी। उसके ऐसा करने से माँ पर क्या बीतेगी? उस दिन समझ नहीं आ रहा था। किसे यह बात बताये। हार कर मैंने उसके पापा को फ़ोन कर सब बात बता दी। वह आगबबूला हो घर पर आये मुझे पीटने लगे।

"सब तुम्हारी वज़ह से हुआ है। सब कुछ जानते हुए भी तुमने दोबारा उसे कॉलेज में जाने दिया था।"

वह उसी रात गुस्से से अपने दोस्तों के साथ डब्लू के घर चले गये थे। वहाँ वह डब्लू को जान से मार देने की धमकी दे कर चले आये थे।

अगले दिन ही पुलिस थाने से बबली के पापा को फ़ोन कर बुला लिया गया था। और उसे एक पत्र दिखाते हुए यह कहा कि आप के नाम यह पत्र दिया गया है कि आप डब्लू और उसके परिवार को मारने की धमकी दे रहे हैं। जब बबली के पापा ने इंकार किया तो उन्होंने पत्र दिखाते हुए कहा इस पर आप की ही लड़की बबली के दस्तखत हैं।

वह चुपचाप वापस घर चले आये थे। मैं उन्हें पहली बार इतना निराश देख रही थी।

"दोबारा कभी भी तुम बबली का नाम इस घर में नहीं लोगी। ना ही हम उससे कोई सम्पर्क रखोगी। समझ लो कि बबली मर गई।"

क्या बबली के लिए माँ-बाप से इतना महत्वपूर्ण था डब्लू? क्या मेरे लिए इतना असान होगा बबली को भूल जाना। रूम में बबली की हर चीज़ मुझे बबली की याद दिलाती थी। बस उस दिन स्कूल के कपड़े पहन कर गई थी। उसके सारे कपड़े अलमारी में पड़े थे। किताबें भी उसी तरह पड़ी थीं। ब्याह के लिए बनाये उसके ज़ेवर को मैं देख-देख खूब रोती रही। एक स्वप्न था बबली का ब्याह धूमधाम से करूँगी। कभी मुझे ख़ुशी हो, सबको कहना था बबली की शादी है। उल्टा लोग मुझे यह कहते बबली ने शादी रचा ली। आख़िर कब तक मैं लोगों से झूठ बोलती सच तो सामने आना ही था। फिर मैं यह भी सोचती आखिर मैंने भी तो मम्मी-पापा के पसंद के लड़के से ब्याह किया था। लेकिन कहाँ खुश रह सकी। चलो अगर बबली ने अपने पसंद के लड़के से ब्याह किया है तो बुरा भी क्या है? 
बबली की हमेशा याद सताती रहती कैसी है, मन लग गया होगा या नहीं? घर के काम कर पाती होगी कि नहीं? मैंने तो कभी उसे कोई काम नहीं कराया था। उसे खाना बनाना भी नहीं आता है। मैं तो बस यही चाहती थी बबली पढ़-लिख कर अफसर बने। अलग-अलग ख़्याल मेरे मन में आते थे।

एक दिन मैंने स्कूल में पता लगाया मीरपुर गाँव से कौन आता है। बारहवीं क्लास की एक लड़की पल्लवी मीरपुर से आती थी और वह बबली और डब्लू के बारे में सब कुछ जानती थी। कुछ दिनों में ही पल्लवी मुझसे घुल-मिल गई, और मेरा रास्ता जैसे साफ हो गया था। मैं अब सब कुछ बबली के बारे में उससे जान सकती थी। उसकी एक बात से तो बहुत ख़ुशी हुई कि वह एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। डब्लू चाहता है कि बबली पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी करे। मगर उसकी माँ जो है वह ठहरी गाँव की, अनपढ़ औरत उसे भला पढ़ाई-लिखाई से क्या मतलब होगा। वह उसे घर के काम-काज के लिए कहती है। अब बेचारी बबली भाभी क्या करे पढ़े या फिर घर के काम करे। बस इस बात को लेकर डब्लू से बबली की लड़ाई हो जाती है। वह कहती है, आप मुझे पढ़ने के लिए कहते हैं, आपकी माँ कहती है घर के सारे काम कर। फिर बबली भाभी का कॉलेज भी गाँव से दूर पड़ता है। कैसे जाएगी कॉलेज पढ़ने के लिए इसकी भी समस्या है। इस सब बात से तंग आकर बबली झगड़ पड़ी डब्लू की माँ से उसकी सासू माँ ने उसके बारे में यह कहा जो अपने माँ बाप की नहीं हुई वह दूसरों की क्या होगी। खूब रोई थी बबली उस दिन। उसने डब्लू से कहा हम यह गाँव छोड़ कर शहर कमरा लेकर रहते हैं। डब्लू ने कहा मैं अपने माँ-बाप को छोड़ कर नहीं जा सकता हूँ। सही मायने में बबली भाभी बहूत पछताती है। मैंने उनसे कहा था एक बार, "भाभी आप क्यों इस तरह भाग कर शादी कर लीये।" उसने रोते हुए बस इतना कहा, "बस उस समय मेरे ऊपर प्यार का भूत चढ़ा हुआ था। कुछ भी समझ नहीं आया कि मैं क्या कर रही हूँ।"

मैं आगे कुछ नहीं सुन पाई उठ कर चल पड़ी थी। इसलिए तो बबली मैंने तुम्हें पढ़ाई पूरी कर आत्म निर्भर हो कर ब्याह करने के लिए कहा था। ताकि जीवन में कभी ठोकर ना खाए। कोई माँ बाप अपने बच्चे को दलदल में नहीं फेंकना चाहता। उस दिन मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।

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