रात (रेखा मैत्र)
काव्य साहित्य | कविता रेखा मैत्र29 Nov 2008
चाँद का झूमर सजाए
रात तुम जाती कहाँ हो?
अपने आँचल में रुपहले तारे टाँके
रात तुम जाती कहाँ हो?
रजनई गन्धा-सी छरहरी दोलसी सी
रात तुम जाती कहाँ हो?
सर्पिणी सी चाल लेकर
नीलमणि आभा बिखेरे
रात तुम जाती कहाँ हो?
कहीं ऐसा तो नहीं
एक रात तुम मुझको डसोगी
ठीक से बोलो
मेरी ऐ रात!
रात तुम जाती कहाँ हो?
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