राधा तेरा श्याम
काव्य साहित्य | कविता ज्योति त्रिवेदी1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
परवाह नहीं मेरी फ़ुर्सत कहाँ उसे काम से
नाराज़गी मेरी सुन राधा तेरे श्याम से
मिल जाता है सबको वो केवल एक नाम से
राधा राधा कहकर मैंने ढूँढ़ा आठों याम से
बैठा है यूँ छुपकर देखे तेरे वाम से
ऐसा भी क्या माँगा राधा तेरे नाम से
न धूलि, न रज है, न कांकर तेरी बाट के
हमतो केवल श्यामा काँटें हैं बस राह के
कब भाग्यक्रम में पग पंकज राधे श्याम के
रज पड़े से हम तर जायें राधा कह दे श्याम से
एक आह तेरी पे राधारानी दौड़े तेरे श्याम है
हम लवण कण कोई भी धरता नहीं पाँव है
एक बूँद तेरी करुणा की दे तो तेरा श्याम है
बंसी बजती ताल थिरकती राधा तेरे गाँ में
पनघट पनघट मेले लगे डेरे कदंब की छाँव में
हम जैसे हर हाट में तन्हा कहना तेरे श्याम से
चौखट तेरी पर पड़े रहेंगे पूछ न तेरे श्याम से
दीनहीन हम विनती सुन ये हर बार करें तेरे श्याम से
हाथ पसारे भटकें कब तक क्यों दूर तेरे धाम से
अरज़ हमारी ग़रज़ हमारी पर मरज़ी बता दे श्याम से
बस एक बार बस एक बार मिलादे राधा तेरे श्याम से
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