रफ़्तार
काव्य साहित्य | कविता हेमंत कुमार मेहरा1 Nov 2019
चरखे को धीरे धीरे से
हौले से चलाया जाता है,
सूत कातने के लिए,
तुमको समझाया था मैंने,
कई दफ़ा, मगर
मगर तुम थी नहीं मानी,
तेज़ रफ़्तार से धागा नहीं बुना जाता॥
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