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राजीव नामदेव ’राना लिधौरी’ – 001

1.
गुरु की जो सेवा करे, मिले उसे सम्मान।
गुरु के ही आशीष से, बनता शिष्य महान॥
2.
गुरु सदैव ही बाँटता, निज सुगंध ज्यों फूल।
उनके ही सद्ज्ञान से, मिट जाते जग-शूल॥
3.
ख़ुशहाली आती रहे, करो ईश का ध्यान॥
तन, मन से होगें सुखी, होगा जन कल्यान॥
4.
हिन्दी मेरी जान है, हिन्दी विश्व महान।
जीवन अर्पित कर दिया, करते हैं सम्मान॥
5.
हिन्दी के कवि सूर हैं, केशव, तुलसीदास।
पंत निराला गुप्त जी, जय कबीर, रैदास॥
6.
जिसने भी छोड़ा नहीं, अहंकार का भाव।
उसके जीवन में सदा, रहता है दुर्भाव॥
7.
लोभ क्रोध, अरु मोह भी, अहंकार के साथ।
यदि इनको छोड़ा नहीं, क्षोभ रहेगा हाथ॥
8.
अहंकार ने खा लिया, राक्षस रावण राज।
अपना करके नम्रता, मिला विभीषण ताज॥
9.
तारे गिन-गिन कट गई, बैरन बिरही रात।
भोर हुए होने लगी, बिन बादल बरसात॥
10.
रजनी तो दुल्हन बनी, पूनम की है रात।
चंदा दूल्हा है बना, तारों की बारात॥
11.
अगणित तारे दूर पर, मिलता नहीं प्रकाश।
एक सूर्य पर्याप्त है, जो है अपने पास॥

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