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रमा द्विवेदी – ताँका – 001

1.
कच्चे रंग हैं
मिलते बाज़ार में
पक्का रंग तो
अपने ही अन्दर
ढूँढते क्यों बाहर?

2.
प्रेम सौगात
हर रंग ले आती
रहे न कमी
मन ऊपर-नीचे
सराबोर हो जाए।

3.
एक फ्रेम में
दर्पण के टुकड़े
जैसा है घर
बिस्तर बँटे हुए
सुख-दुःख भी बँटे।

4.
हर आदमी
विशिष्ट व अनोखा
किसी के जैसा
नहीं बनने में ही
उसकी पहचान।

5.
जीवन व्याख्या
बौद्धिकता से नहीं
निजत्व बोध
अंतस में मिलता
बाहर क्यों ढूँढता?

6.
मन को भाए
हर रंग सुन्दर
प्रेम रंग हो
साथ हो प्रियतम
मनुआ नाचे गाए।

7.
रंगों का रिश्ता
मन:स्थिति से होता
वस्तु से नहीं
मन संतुलित हो
हर रंग छू जाए।

8.
फूलों के रंग
उदासी हर लेते
खिलखिलाते
और यह कहते
हँसो और हँसाओ।

9.
जतन करो
हर रंग सहेजो
फीका न पड़े
बनी रहे मिठास
जीवन भर पास।

10.
रंग सन्देश
ईर्ष्या -द्वेष मिटाओ
गले लगाओ
सब कुछ भूल के
रंगों में डूब जाओ।

11.
प्यार का रंग
चढ़े जो एक बार
कभी न छूटे
निखरता ही जाए
समय रीत जाए।

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