रमेशराज की तेवरी - 2
काव्य साहित्य | कविता रमेशराज1 Jun 2019
(एक ताज़ा तेवरी )
ख़ुशियों के मंज़र छीनेगा
रोज़ी-रोटी-घर छीनेगा।
है लालच का ये दौर नया
पंछी तक के पर छीनेगा।
हम जीयें सिर्फ सवालों में
इस ख़ातिर उत्तर छीनेगा।
वो हमको भी गद्दार बता
कबिरा के आखर छीनेगा।
धरती पर उसका क़ब्ज़ा है
अब नभ से जलधर छीनेगा।
उसको आक्रोश बुरा लगता
शब्दों से पत्थर छीनेगा।
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