राज़दान राज़ - कतआ - 01
शायरी | क़ता राज़दान ’राज़’1 Sep 2020 (अंक: 163, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
बुढ़ापे में बुढ़ापे के दिनों को कोसने वालो
बुढ़ापा एक नेमत है के जो सबको नहीं मिलती
ख़ुदाई की समझ आती है जो जाकर बुढ़ापे में
कहो कुछ भी जवानी तक किसी को वो नहीं मिलती
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