रिश्ता
काव्य साहित्य | कविता जावेद आलम खान15 Nov 2019
जीवन की इस बेला में
जब चारों ओर दिखावा है
यह रिश्ता है सच्चा पक्का
या फिर सिर्फ़ छलावा है
कहाँ गयीं वो कमसिन रातें
अब वो मीठी बात कहाँ
राह देखते नयनों में
उत्कंठा के जज़्बात कहाँ
अपने दिल का हाल सुनाऊँ
हैं ऐसे हालात कहाँ
रेगिस्तानी काया में अब
प्रेम भरी बरसात कहाँ
अरमानों की हत्याओं पर
अब केवल पछतावा है
यह रिश्ता है सच्चा पक्का
या फिर सिर्फ छलावा है
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