रिश्ता
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम15 Feb 2021
तुम्हारे मेरे बीच जो हुआ था
इसमें न तुम ग़लत थे
और न मैं,
हमारी सच्चाई
हमारी आत्माएँ जानती हैं
प्रेम का हर वर्ण
हमारी सच्चाई से वाकिफ़ है
न तुम्हें कोई गिला करने की
ज़रूरत है।
और न ही
मुझे कोई शिकायत
तुम्हारे मेरे बीच जो हुआ था
वह समय की माँग थी
इच्छाओं की ज़रूरत थी
जो हमारी संवेदनाओं से जगी थी
लोग इसे ग़लत कहें
यह उनके समय की माँग है,
झूठ स्वीकार करने में
कुछ नहीं जाता है,
मगर सच कहने में
सब कुछ चला जाता है
पर यह बात याद रखना करूणा!
सबकुछ चले जाने के बाद भी
सच कभी ख़ाली नहीं होता
क्योंकि तुम्हारे मेरे बीच
सच का रिश्ता था
और रहेगा ख़्यालों के
मरने तक।
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