रिश्ते
काव्य साहित्य | कविता अजय चंदेल25 Apr 2015
रिश्ते तल्ख़ इतने हो न जाएँ,
जिगर को फूँकें, ज़ुबान जलाएँ।
ये धार शब्दों की काटती है,
भाई से भाई, बेटों से माएँ ।1।
है बात कुछ जो, चुभी है गहरी,
मगर पीर दिल की, किसे सुनाएँ।
यहाँ सारे चेहरे, हैं अजनबी से,
कुछ किससे पूछें, किसे बताएँ ।2।
लगी थी ठोकर, सँभल गया पर,
थी मेरे पीछे, बड़ी दुआएँ।
दूर होकर भी, करीब रहना,
अजनबी लगें न, नज़र जब मिलाएँ ।3।
बहुत से क़िस्से हैं खट्टे मीठे,
कभी हँसाएँ, कभी रुलाएँ।
बड़ा ही मुश्किल ये फ़ैसला है
किसे याद रखें, किसे भुलाएँ ।4।
मिट्टी है घर की, अलग महक है,
अलग है रंगत, अलग हवाएँ।
अलग सा चैन-ओ-अमन यहाँ है,
इस शहर की हैं अलग अदाएँ ।5।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
गीत-नवगीत
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं