ऋतुएँ कौन बदलता माँ?
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. उमेश चन्द्र सिरसवारी15 May 2019
अभी-अभी थी ज़ोर की गर्मी,
जाड़ा कहाँ से आया माँ।
इतनी जल्दी कैसे होता?
ऋतुएँ कौन बदलता माँ?
कभी है गर्मी बड़े ज़ोर की,
कभी सर्दी बड़ा सताती है।
टप-टप बूँद पड़ें ज़ोर से,
सिहरन-सी आ जाती है।
जल्दी-जल्दी मौसम बदले,
सब कैसे हो पाता है?
कभी लपट-सी लू चलती है,
कभी कोहरा छा जाता है।
मम्मी हँसकर बोली मुन्ना,
धरती घूमा करती है।
घूमे अपनी अक्ष-धुरी पर,
दिन और रात बदलती है।
सूरज के वो लगाए चक्कर,
ऋतुएँ जग में लाती है।
कहीं रहता है खूब उजाला,
कहीं रात हो जाती है।
रातों में ठंडक हो जाती,
दिन में गर्मी आती है।
तेइस अंश झुकी है धरती,
ऋतु परिवर्तन लाती है।
एक हिस्सा दूर सूरज से,
जलवायु सर्द हो जाती है।
सुन लो मुन्ना ऐसे-ऐसे,
ऋतु बदलती-जाती हैं।
भारत, कनाडा और अमरीका,
जर्मन-इंग्लैंड-चीन में सर्दी है।
जापान, रूस भी नहीं बचे हैं,
ठंड बहुत ही कड़की है।
कुछ देशों में भारी गरमी,
इन दिनों आग बरसती है।
आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में,
हवा आग-सी बहती है।
दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना,
जहाँ भारी गरमी पड़ती है।
सबका वहाँ पसीना छूटे,
सबकी आफ़त रहती है।
भारत में सताए सर्दी,
सबने रजाई पकड़ ली है।
है पृथ्वी का ऋतु परिवर्तन,
तुमने ये बात समझ ली है?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं