रिवाज़
काव्य साहित्य | कविता कल्पना 'ख़ूबसूरत ख़याल'15 Oct 2019
जन्म दिया माँ ने
बेटी-बेटे दोनों को
सिखाये संस्कार
रीति-रिवाज़
और सिखाई परम्पराएँ
मान-मर्यादा
बस बेटी को
क्योंकि माँ की माँ
ने कहा था
कि वो तो बेटा है
कुछ भी करे
उसे दुनिया कुछ
न कहेगी
बेटी का चरित्र
सफ़ेद चादर सा
होता है
जिसमें पानी के
छींटों से भी दाग़
लग जाते हैं
ग़लती की माँ ने
संस्कार बराबर देने होंगे
ये रिवाज़ बदलने होंगे
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Kalpana 2019/10/15 08:12 AM
शुक्रिया सर ❣️