रोटी
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता डॉ. दत्ता कोल्हारे ’रत्नाकर’6 Sep 2016
मूल कवि : उत्तम कांबळे
डॉ. कोल्हारे दत्ता रत्नाकर
रोटी
छिनाल होती है
घोड़े की लगाम होती है
टाटा की गुलाम होती है।
रोटी
मारवाड़ी का माप होती है
पेट में छुपा पाप होती है
युगोंयुगों का शाप होती है।
रोटी
इतिहास और भूगोल भी
गले का फांस और श्वास भी
पहेलियों से भरा आकाश और आभास भी।
रोटी
गवाह होती है धर्मयुद्धों की कर्मयुद्धों की
काग़ज़ पर धीरे से उतरनेवाली कविताओं की
और कविताओं में बोई गई विस्फोटों की।
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