रूबरू ख़ुद से
काव्य साहित्य | कविता गौरी1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
बहुत हलचल मची है यहाँ
फ़ुरसत से बैठने को वक़्त कहाँ
तेज़ दुनिया के साथ मैं भी चली
वो ले गया मुझको जहाँ
पर एक बार रूबरू ख़ुद से हुए
कुछ बातें ख़ुद से भी किए
चेहरे पर मुस्कान आई
देखी ख़ुद की परछाई
अकेले में भी हँस लेती
गुनगुना लेती थी कभी
बेवज़ह ख़ुश रहती थी कभी
लोगों के बीच रहकर
ख़ुद को मैं गई थी भूल
आज भीड़ से होकर अलग
पाई ख़ुद की एक झलक
हटाई अपनी तस्वीर से धूल
कुछ क्षण अपने लिए निकाले
सुलझे कुछ उलझे सवाल
कभी ख़ुद से भी मिला कीजिए
बातें दो-चार किया कीजिए॥
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