साली
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता आलोक कौशिक15 Feb 2021 (अंक: 175, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
होता है वो आदमी
बहुत भाग्यशाली
नसीब होती है जिसे
ससुराल में साली
लगे ग्रीष्म ऋतु में
जैसे शीतल पवन
वैसी ही लगती है
वामांगी की बहन
कुरूप व्यक्ति को भी
कहती है मनोहर
बुढ़ापे में भी लगती है
साली सबसे सुंदर
दामाद बिन बुलाए भी
ससुराल चला आता
जब तक साली का
विवाह नहीं हो जाता
जब हो जाती है
साली की शादी
जीजा बन जाता है
तुरंत नारीवादी
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अथ स्वरुचिभोज प्लेट व्यथा
हास्य-व्यंग्य कविता | नरेंद्र श्रीवास्तवसलाद, दही बड़े, रसगुल्ले, जलेबी, पकौड़े, रायता,…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अच्छा इंसान
- आलिंगन (आलोक कौशिक)
- उन्हें भी दिखाओ
- एक दिन मंज़िल मिल जाएगी
- कवि हो तुम
- कारगिल विजय
- किसान की व्यथा
- कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
- क्योंकि मैं सत्य हूँ
- गणतंत्र
- जय श्री राम
- जीवन (आलोक कौशिक)
- तीन लोग
- नन्हे राजकुमार
- निर्धन
- पलायन का जन्म
- पिता के अश्रु
- प्रकृति
- प्रेम
- प्रेम दिवस
- प्रेम परिधि
- बहन
- बारिश (आलोक कौशिक)
- भारत में
- मेरे जाने के बाद
- युवा
- श्री कृष्ण
- सरस्वती वंदना
- सावन (आलोक कौशिक)
- साहित्य के संकट
- हनुमान स्तुति
- हे हंसवाहिनी माँ
हास्य-व्यंग्य कविता
बाल साहित्य कविता
लघुकथा
कहानी
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं