सामना
काव्य साहित्य | कविता मनोज बाथरे1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
ज़िंदगी में हर ओर
आदमी को हर पल
तन्हाई, वीरानियों
का सामना करना
पड़ता है
परंतु क्या ?
ये तन्हाईयाँ
ये वीरानियाँ
आदमी को इतना
कमज़ोर कर
देती है कि/वो
उनका आत्मनिर्भरता
के साथ मुक़ाबला
नहीं कर सकता!
कर सकता है
उसके लिए
अपनी आत्मनिर्भरता
पर पकड़ मज़बूत
करनी होगी।।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं