सांध्य सुषमा
काव्य साहित्य | कविता सौरभ मिश्रा15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
कह क्षितिज को विदा सूर्य ढलने चला
साँझ चूनर लिए अब लहरा रही
बादलों पे सुनहरी परत चढ़ गई
डालियाँ वृक्ष की मौन होकर खड़ीं
दूर बोले पपीहा विरह में कहीं
गिर गई इक धरा पे कली बिन खिले
अब तुम ही कहो प्यार कैसे बढ़े
हो गई तुम जुदा बिन मुझसे मिले
मध्य की आज बेला है सुंदर सजी
गूँथकर कुछ सितारे चली रात्री है
चांद झांके अभी पूर्व की ओर से
कैसी सुंदर बनी और ठनी रात्री है
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