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सब ठीक होगा

धैर्य अस्वस्थ है
रिश्तों की रस्सी से बाँधी जा रही है राय
दुविधा दूर हुई
कठिन काल में कवि का कथन कृपा है
सब ठीक होगा
अशेष शुभकामनाएँ
 
प्रेम, स्नेह व सहानुभूति सक्रिय हैं
जीवन की पाठशाला में
बुरे दिन व्यर्थ नहीं हुए
कोठरी में क़ैद कोविड ने दिया
अँधेरे में गाने के लिए रोशनी का गीत
 
आँधी-तूफ़ान का मौसम है
खुले में दीपक का बुझना तय है
अक़्सर ऐसे ही समय में संसदीय सड़क पर
शब्दों के छाते उलट जाते हैं
और छड़ी फिसल जाती है
 
अचानक आदमी गिर जाता है
 
वह देखता है जब आँखें खोल कर
तब क़िले की ओर
बीमारी की बिजली चमक रही होती है
और आश्वासन के आवाज़ कान में सुनाई देती है
 
गिरा हुआ आदमी ख़ुद खड़ा होता है
और अपनी पूरी ताक़त के साथ
शेष सफ़र के लिए निकल पड़ता है।

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