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सभी चोर हैं तो

सौरभ जी और दीपक जी एक-दूसरे के घर आते-जाते रहते हैं। दोनों ही कुछ वर्ष पहले साठ वर्ष की आयु पर पहुँचने पर सेवानिवृत हुए थे। ख़ैर, कोई दो महीने पहले सौरभ जी जिस वक़्त दीपक जी के घर पहुँचे तो उस वक़्त वे अपने बैठक के कमरे में दीवारों पर लगी फोटुओं को उतार रहे थे। पास जाकर उन्हें मालूम हुआ कि वे बीते वक़्त के राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीरें थी। इससे पहले सौरभ जी कुछ पूछते, ख़ुद दीपक जी बोल उठे थे, "अब जाकर पता लगा कि ये सभी चोर थे। ऐसे लोगों की तस्वीरें टाँगे रखना तो अव्वल दर्जे की बेवकूफ़ी थी।" बहरहाल, उसके बाद दीपक जी ने कोने में मेज़ पर रखी फोटुओं को अपनी दीवारों पर टाँगना शुरू किया। इस वक़्त के तीन बड़े नेताओं की तस्वीरें थी। ख़ैर, संयोगवश आज जिस वक़्त सौरभ जी जी दीपक जी से मिलने पहुँचे तो देखा कि अब वे दो महीने पहले टाँगी गई तस्वीरों को उतार रहे थे। इस बार भी दीपक जी ख़ुद ही बोल उठे, "पुरानी पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि ये लोग भी दूध के धुले नहीं हैं। मैंने सोचा जब सभी चोर हैं तो फिर किसी की भी फोटो क्यों लगाई जाए?"

इसके बाद उन्होंने कोने की मेज़ पर रखी नई फोटुओं को दीवारों पर लगना शुरू कर दिया। वे सभी जानवरों की तस्वीरें थी।

उनको टाँगने के बाद वे हँसते हुए बोले, "इनको कोई चोर नहीं कहेगा। मेरी सरदर्दी ख़त्म हुई।"

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