सबू को दौर में लाओ बहार के दिन हैं
शायरी | ग़ज़ल अब्दुल हमीद ‘अदम‘26 Jun 2007
सबू को दौर में लाओ बहार के दिन हैं
हमें शराब पिलाओ बहार के दिन हैं
सबू=प्याला
ये काम आईन-ए-इबादत है मौसम-ए-गुल में
खारों को गले से लगाओ बहार के दिन हैं
आईन-ए-इबादत=पूजा का नियम
ठहर ठहर के न बरसो उमड़ पड़ो यक दम
सितमगरी से घटाओ बहार के दिन हैं
शिकस्ता-ए-तौबा का कब ऐसा आएगा मौसम
‘अदम’ को घेर के लाओ बहार के दिन हैं
शिकस्ता-ए-तौबा= तोबा की पराजय
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