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सच्चा सोनार : भोजपुरी लोककथा

बात बहुत पुरानी है, वही आज कहानी है । एक गाँव में एक सोनार रहता था । वह सोनारी (गहने बनाने और बेचने का काम) करता था । उसके चार बेटे थे । एक दिन सोनार ने अपने चारों बेटों को बुलाया और पूछा,"तुम सबको मालूम है, सच्चे सोनार की परिभाषा ?" 

बड़े बेटे ने कहा, "जो बचाए रुपए में से चार आने, हम सच्चा सोनार उसी को माने।" 

मझले ने कहा, "सच्चे सोनार का है यह आशय, पचास पैसे खुद की जेब में और पचास ही पाएँ ग्राहक महाशय।" 

सझले ने कहा, "बिल्कुल नहीं! सच्चे सोनार का होना चाहिए यही सपना, रुपये में बारह आना अपना।" 

अब बारी थी छोटे की, उसने कही बात पते की, "रुपये का रुपया भी ले लो और ग्राहक को खुश भी कर दो।"

चलिए अब आगे की दास्तान सुनते हैं:-

सोनार और उसके बेटों की बातें एक अमीर महाशय सुन रहे थे। उन्होंने सोनार के छोटे बेटे की परीक्षा लेनी चाही। एक दिन अमीर महाशय ने सोनार के छोटे बेटे को अपने घर पर बुलाया और कहा, "मुझे सोने का एक हाथी बनवाना है लेकिन मैं चाहता हूँ कि वह हाथी तुम मेरे घर पर बनाओ।" 
अमीर महाशय की बात सोनार के छोटे बेटे ने स्वीकार कर ली। वह  प्रतिदिन अमीर महाशय के घर पर आने लगा और अमीर महाशय की देख-रेख में हाथी का एक-एक भाग बनाने लगा। शाम को जब सोनार का छोटा लड़का अपने घर पर पहुँचता था तो वहाँ भी पीतल से एक हाथी का एक-एक भाग बनाता था। एक हफ़्ते में अमीर महाशय के घर हाथी बनकर तैयार हो गया । 

सोनार के छोटे बेटे ने अमीर महाशय से कहा, "महाराज, थोड़ा दही मँगाइए, क्योंकि दही लगाने से इस हाथी में और चमक आ जाएगी।" 

अभी अमीर महाशय दही की व्यवस्था कराने की सोच ही रहे थे तभी घर के बाहर किसी ग्वालिन की आवाज सुनाई दी, "दही ले! दही।" 

अमीर महाशय ने उस ग्वालिन को बुलवाया। सोनार के बेटे ने कहा, "महाराज! इतनी दही क्या होगी? आप इस ग्वालिन को सौ-पचास दे दीजिए और मैं इस दही की नदिया (बरतन) में हाथी को डुबोकर निकाल लेता हूँ ।" 

अमीर महाशय ने कहा, "ठीक है ।"

 इसके बाद सोनार के छोटे बेटे ने दही में हाथी को डुबोकर निकाल लिया और ग्वालिन अपना दही लेकर फिर बेचने निकल पड़ी । सोनार के बेटे ने अमीर महाशय से कहा, "महाराज! आपका हाथी तैयार है।" 

अमीर महाशय हँस पड़े और बोले, "एक दिन तो तुम अपने पिता को सच्चे सोनार की परिभाषा बता रहे थे और शत-प्रतिशत कमाने की बात कर रहे थे ।" 

सोनार के बेटे ने ज़ोरदार ठहाका लगाया और कहा, "महाराज! मैंने अपने पिता से झूठ नहीं बोला। दही बेचनेवाली मेरी पत्नी थी और असली हाथी मेरे घर चला गया और आपको मिला सोने का पानी चढ़ा हुआ नकली हाथी। हुआ यों कि दही की नदिया में यह नकली हाथी पहले से डला हुआ था और मैंने डुबाया तो असली हाथी को लेकिन निकाला इस नकली हाथी को। समझे।" 

अमीर महाशय हैरान भी थे और परेशान भी, क्योंकि उन्हें सच्चे सोनार की परिभाषा समझ में आ गई थी ।

प्रेम से बोलिए स्वर्णकार महाराज की जय !!

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