अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सहिष्णुता

रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफार्म पर लोग अपनी-अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे। ट्रेन पाँच-छः से लेकर चौदह-सोलह घंटे तक लेट चल रही थी। एक प्रमुख सेक्शन में भीषण रेल दुर्घटना में डिरेलमेण्ट के कारण ट्रेनें धीमी गति से मार्ग परिवर्तित कर चलायी जा रही थीं।

उच्च श्रेणी प्रतीक्षालय में भी अनेकों यात्री इंतज़ार की घड़ियाँ पूरा होने का इंतज़ार कर रहे थे। इन यात्रियों में एक फुटबालर, एक नेता, एक साहित्यकार, एक संगीतकार, एक पेंटर, एक डांसर व एक कवि भी था।

ट्रेनों के इंतज़ार के कारण सभी परेशान थे। इंतज़ार की इतनी लंबी घड़ी ही इनकी परेशानी का कारण थी। अधिकांश लोग क्रियेटिव थे, ये ऐसे शख़्स थे कि बहुत लंबे समय तक अपने फ़न से दूर नहीं रह सकते थे।

अंततः नीरसता भंग होती दिखी। इसकी शुरूआत संगीतकार ने की, उसने अपना गिटार निकालकर धीरे-धीरे मधुर धुनें निकालनी शुरू कर दीं। लोगों को अच्छा लगा, वे उसका उत्साहवर्द्धन करने लगे। उसने घंटे भर के शानदार संगीत से लोगों की नीरसता दूर दी।

थोड़ी देर बाद संगीतकार आराम के लिये रुक जाता है तो पेंटर अपनी तूली निकालकर पेंटिग शुरू कर देता है। डेढ़ घंटे में वह एक शानदार पोर्ट्रेट तैयार कर देता है, जो इन सभी लोगों ने बनते देखा था। नब्बे मिनट कैसे बीत गये किसी को पता ही नहीं चला और लोगों का अनुभव ख़ुशनुमा था।

थोड़ी देर बाद कवि शुरू हो गया। लोग लगभग पैंतालीस मिनट तक हास्य व अन्य रचनाओं को मंत्र मुग्ध होकर सुनते रहे। लोगों के मन हल्के हो गये, लोग लगभग भूल गये कि उनकी ट्रेन लेट है तथा वे प्रतीक्षालय में बैठे हैं।

अब साहित्यकार की बारी थी उसने एक नाटक को पढ़ना शुरू किया। वह सहयात्रियों फुटबालर व डांसर की मदद से उसका मंचन ही जीवंत रूप से कर देता है। अब लोगों के अस्सी मिनट कैसे कट गये, किसी को पता ही नहीं चला।

नेता जी कहाँ पीछे रहते, उन्होंने व्यवस्था पर एक भाषण दे डाला। लोग काफी सहिष्णु हो गये थे अतः उत्साहित होकर नेताजी ने लोगों के चालीस मिनट हँसी-खुशी में व्यतीत करवा दिये।

अब डांसर की बारी थी उसने गज़ब का माइकल जैक्सन का मूनवाक डांस करके दिखाया। लोग मोहित हो गये। लगभग एक घंटा लोगों को ऐसा लगा कि माइकल जैक्सन का इतना अच्छा डांस भी कोई प्रतीक्षालय में कर सकता है।

फुटबालर से अब रहा नहीं गया उसने अपने बैग से शानदार फुटबाल निकाली व अपने पैर व सिर के तालमेल से फुटबाल के ऐसे करतब दिखाये कि लोग वन्स मोर, वन्स मोर कहते रहे।

फुटबालर ने भी सवा घंटे तक शानदार तरीके से लोगों को बाँधे रखा।

प्रतीक्षालय में सभी लोग प्रसन्न थे। अब अनाऊंसमेंट हो गयी थी और राजधानी एक्सप्रेस घड़घड़ाकर प्लेटफार्म में आ गयी थी। लोगों को ज़रा भी इंतज़ार का तनाव महसूस नहीं हो रहा था।

क्रियेटिव लोगों के समूह की एक दूसरे के प्रति सहनशीलता व क्रियेटीविटी के सम्मान के कारण एक-एक पल जो कठिनाई से बीत रहा था वह चुटकियाँ बजाते बीत गया था।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

आत्मकथा

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं