सजनी सजन रंग में निढाल हुई
काव्य साहित्य | कविता कविता झा1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
रँगे रंगों में लाल, हाल बेहाल किए,
पिया का रंग ओढ़े तन-मन रँगाए,
मिलन के गुलाल कपोल पे लगाए,
प्रेम की पिचकारी से बदहाल हुई।
सजनी सजन रंग में निढाल हुई।
होली आए जब पिया का साथ हो,
रँगाए तन-मानस जब पिया पास हो,
मन से भींगी प्रेम में पिया के,
रतिया जैसे मालामाल हुई।
सजनी सजन रंग में निढाल हुई।
प्रीत का रंग गहरा चढ़ाए,
धानी में सजाए सपने रंगभरे,
सतरंगी अम्बर की चूनर ओढ़े,
हाय! ये कैसी प्रेम फुहार हुई।
सजनी सजन रंग में निढाल हुई।
पिया आसन्न से भंग सा नशा चढ़े,
सब भूली पिय चरणों में सुध-बुध गँवाए,
होंठों की चाशनी साँसों में घुलवाए,
पिय गले से गुँथ पुष्पहार हुई।
सजनी सजन रंग में निढाल हुई।
वर्षों की सूनी तड़पती अखियाँ,
सालों की उजली अनछुई रतिया,
हज़ार रंग लिए देखे एक क्षण पिया,
सजनी रंग में रँगी बनारस घाट हुई।
सजनी सजन रंग में निढाल हुई।
अटूट गहरे अमिट पिय रंग में रँगे,
चूनर पे पिया का हिय रंग लगाए,
ओढ़ के निकली निछावर करने,
सजनी पिया पथ की रँगी बाट हुई।
सजनी सजन रंग में निढाल हुई।
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