सखि बसंत में तो आ जाते
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Feb 2020
सखि बसंत में तो आ जाते।
विरह जनित मन को समझाते।
दूर देश में पिया विराजे,
प्रीत मलय क्यों मन में साजे,
आर्द्र नयन टक टक पथ देखें
काश दरस उनका पा जाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
सुरभि मलय मधु ओस सुहानी,
प्रणय मिलन की अकथ कहानी,
मेरी पीड़ा के घूँघट में ,
मुझसे दो बातें कह जाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
सुमन-वृन्त फूले कचनार,
प्रणय निवेदित मन मनुहार
अनुराग भरे विरही इस मन को
चाह मिलन की तो दे जाते ,
सखि बसंत में तो आ जाते।
दिन उदास विहरन हैं रातें
मन बसन्त सिहरन सी बातें
इस प्रगल्भ मधुरत विभोर में
काश मेरा संदेशा पाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
बीत रहीं विह्वल सी घड़ियाँ,
स्मृति संचित प्रणय की लड़ियाँ,
आज ऋतु मधुमास में मेरी
मन धड़कन को वो सुन पाते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
तपती मुखर मन वासनाएँ।
बहतीं बयार सी व्यंजनाएँ।
विरह आग तपती धरा पर
प्रणय का शीतल जल गिराते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
मधुर चाँदनी बन उन्मादिनी
मुग्धा मनसा प्रीत रागनी
विरह रात के तम आँचल में
नेह भरा दीपक बन जाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
कविता
लघुकथा
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
दोहे
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
व्यक्ति चित्र
साहित्यिक आलेख
सिनेमा और साहित्य
कहानी
किशोर साहित्य नाटक
किशोर साहित्य कविता
ग़ज़ल
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}