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समय की धार पर अकुलाए शब्द - आरसी चौहान

समीक्ष्य पुस्तक - "और कितने टुकड़े" कहानी संग्रह
लेखक - विक्रम सिंह
प्रकाशक : अमन प्रकाशन, कानपुर
संस्करण : 2015
पृष्ठ : 128
पेपर बैक - 85रु. सजिल्द- 250रु.

हिन्दी साहित्य में किसी रचनाकार की रचनाओं के मूल्यांकन का मानक क्या है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। समय की छननी से छनने के बाद ही पता चलता है कि किस में कितना दम है। एक ऐसा कथाकार जो अपने आस -पास की सच्चाइयों को बड़ी संजीदगी के साथ प्रस्तुत करता है तो ऐसा लगता है कि हमाम में सभी नंगे हैं।

भाई-भतीजावाद, गुटबाज़ी, मक्खनबाज़ी, तरफ़दारी एवं जी हुज़ूरी में उलझी आलोचना की धृतराष्ट्री आँखों पर गांधारी पट्टी से सब गड्ड-मड्ड दिखाई दे रहा है। झूठ-फ़रेब की पताकाओं में विजयी होने का शंखनाद सच्चे साहित्य प्रेमियों के हृदय को विदीर्ण कर रहा है और एक हिरन के माफ़िक लेखक खूंखार पंजों के बीच से बच निकल जाने की राह तलाश रहा है।

युवा लेखक विक्रम सिंह ऐसे ही कहानीकारों में से एक हैं। देश भर की तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कहानियों का संग्रह है "और कितने टुकड़े"। इनकी कहानी "कीड़े" की प्रासंगिकता तब और बढ़ जाती है जब लख्खा सिंह जैसा एक आम आदमी अपने विभिन्न प्रकार के पहचान पत्रों के लिए आफ़िसों में मारे-मारे फिर रहा है। वहीं छोटे-बड़े कर्मचारी कीड़ों की तरह देश को खोखला करने में लगे हैं।

मानवीय संबंधों के महीन धागों में बुनी कहानी "कोलम्बस एक प्रेम कथा" सीधी, सपाट -सी भाषा में बहुत कुछ कह जाती है। जबकि "सज़ा’ कहानी दो धर्मों के बीच पनप रहे प्रेम प्रसंगों में धर्म को कील की तरह ठोक कर लव जेहाद का नाम दिए बेगैर सज़ा देने का एक नया तरीका ईजाद किया है जो हृदय को मथ कर रख देता है। शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का नायाब नमूना इस कहानी में देखने लायक़ है।

बेरोज़गारों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार के एक-एक रेशों को खोल कर रखती कहानी "चक्रव्यूह’ निरीह लोगों के शोषण का जीवन्त दस्तावेज़ है जहाँ तथाकथित जाली कंपनियों द्वारा लाखों करोड़ों का चूना लगाना उनकी फ़ितरत बन चुकी है। वहीं शहर-देहात का युवा शोषण के दलदल में अपने प्राणों के एक-एक रेशे को बचाने की जद्दोजहद में दम तोड़ रहा है। "पसंद नापसंद" कहानी तो आप पढ़ने के बाद ही तय कर पायेंगे कि बेरोज़गारी किस क़दर हावी है। पावर पैसा और परिवार द्वंद्वों के बीच झूलती कहानी है जो आपको अंत तक बाँधे रखने में सफल होती है।

भारत विभाजन की त्रासदी को कई कहानीकारों ने क़लमबद्ध करने की कोशिश की है। जिस तरह कथ्य एवं शिल्प का अनूठा प्रयोग किया है यह नवोदित कहानीकार "और कितने टुकड़े" में चकित करता है। "गुल्लू उर्फ उल्लू" , "गणित का पण्डित" जैसी अन्य कहानियाँ भी अपनी छाप छोड़ती नज़र आती हैं। जबकि कुछ कहानियाँ तो खिलंदड़पन में लिखी हुई सी जान पड़ती हैं। फिर भी इस कहानीकार से भविष्य में काफी सम्भावनाएँ हैं।

संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121 
मोबा.- 08858229760 
ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

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